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________________ 1655 ANDRA ऊंचे इहो अर्थात् कर्त्तव्यके लिए खड़े होनाको । पर मारण तो और पदार्थ को ही मानता है । यदि कोई ऐसा कहे, कि जैन ती निमित्त-कारण कोई ईश्वर है नहीं । इसका समाधान ऐसा है कि "स्याद्वाद अनुभव रत्नाकर" हमारा रचा हुआ है, उसमें जो नैयायिक मत दिखाया है, वहां जीव और ईश्वर की एकता कर दिखाई है, सो देखो। इस जगह ऐसी शंका होती है, कि कपिन का विरोध मिटा, परन्तु निमित्त कारण ईश्वर का समाधान न हुआ। इसका उत्तर ऐसा है कि इस सृष्टि के रचने में तथा जन्म-मरण करने में जीव निमित्त कारण है, क्योंकि निश्चय . अर्थात् नियम-पूर्वक जीव अपने गुण का कर्ता है और जन्म, मरण आदि का कर्ता नहीं, क्योंकि जन्म-मरणादि सुख-दुःख पौद्गलिक हैं, सो निश्चय नय करके उपादान पुद्गल कर्ता है और जीव निमित्त है । यदि उसको उपादान कारण मान लेंगे, तब तो जीव का अभव्यादि स्वभान न रहेगा । जब अभव्यादि स्वभाव जीव में न रहा तो अजीव हो जाएगा। इस रीति से निमित्त भी बन गया। अब यहां यह सन्देह होता है, कि नैयायिक तो नाना ईश्वर नहीं मानता है । तो हम कहते हैं, कि नैयायिक ने आत्मा एक मानी है, इसको जहां द्रव्य की गणना की है, वहां पर देखो। हमने तो विरोध मिटाकर झगड़ा मिटा दिया । अब इस जगह यह सन्देह होता है, कि नैयायिक मोक्ष में आत्मा को जड़वत् मानता है, तब विरोध कहां मिटा ? उत्तर-नैयायिक जो जड़वत् मानता है, उसका कारण यह है कि मोक्ष में हिलना, चलना, इशारा करना, शब्द-उच्चारणादि कुछ नहीं है, इसलिए उसकी समझ के अनुसार कहता है, क्योंकि किसी ने यह दोहा ठीक ही कहा है। "जितनी जाकी बुद्ध है, उतनी कहे बनाय । बुरा न ताका मानिये, लेन कहां से जाय ?।" सांख्यवादी कहता है कि "पुरुष: पलाशवत्"-पुरुष ढाक के पत्ते की तरह है, अर्थात् जैसे ढाक के पत्ते के ऊपर पानी पड़ता है, परन्तु भीतर प्रविष्ट नहीं होता, इसी प्रकार पुरुष अर्थात् आत्मा में प्रकृति का लेप नहीं है । वेदान्ती भी ब्रह्म को कूटस्थ, सच्चिदानन्द रूप मानते हैं, माया की उपाधि में सर्व प्रपंच हो रहा है । तब देखो सर्वज्ञ वीतरागने भी अपने ज्ञान में देखा कि Jain Education International For Personal & Private Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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