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तू अपने शरीर से किसी को भी पीडितम कर। परन्तु उन शक्तियों के असंख्यात भेद हैं । जैसी-जैसी जिसको शक्ति होगी समाज के अनुसार सिद्धि दिखावेगा।
अब हम इस स्थान पर यह दिखाते हैं, कि जो हम पहले 'मृतक-मिलाप' . के प्रसंग में कह आये थे कि भूतादि प्रत्यक्ष इसलिए नहीं होते, कि बताने वाला । उनका यथावत स्वरूप नहीं जानता, इसके वास्ते हमने समाधि का नाम लिया . था उसको यहां दिखाते हैं। ____जो पिण्डस्थ ध्यान वाला अपनी शक्ति के अनुसार जितने पिण्ड की वस्तु उसको यथावत् दीखेगी, उसी वस्तु के क्रिया गुण से परिचित होकर उसको अपने मतलब में ले आवेगा। तात्पर्य यह है कि जो युंजानयोगी योजना करके पिण्डस्थ ध्यान में जितना पिण्ड अर्थात् भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक इन चार निकाय के देवताओं में जितनी उसकी शक्ति होगी उसके अनुसार देवताओं का स्वरूप जानकर उसको मन्त्र में गर्भित कर जिसको वतावेगा, उसी को सिद्ध हो जायेगा। दो दिन चार दिन का काम नहीं, हज़ार दो हजार माला फेरने का भी काम नहीं, जैसे किसी मनुष्य को आवाज देकर बुलाता हैं तब वह मनुष्य एक आवाज को सुने, दूसरी को सुने, आखिर तीसरी आबाज में तो आ ही जाता है, वैसे ही मनुष्य की तरह जो भूतप्रेतादि देवता हैं वे भी तीसरी बार मन्त्र पढ़ने से आ जाते हैं।
ऊपर लिखित व्यवस्था के न होने से इस समय में उक्त गति हो रही है। इसका कारण यही है कि ऊपर लिखे के अनुसार लोगों की व्यवस्था तो नहीं है केवल पुस्तकों को देखकर बताते हैं, गुरु बन जाते हैं लोगों को ठग कर खाते हैं, जिज्ञासुओं का विश्वास उठाते हैं। सिद्ध हो गया तब तो सिद्ध बने ही हुए हैं, नहीं तो बहाना बतलाते हैं सो दिखाते हैं। वैष्णव मतवाले कहते हैं कि शिवजी ने मन्त्र कील दिये इससे सिद्ध नहीं होते । और जैनी लोग कहते हैं कि फलाने मन्त्र की फलानी गाथा भण्डार कर दी है इसलिए यह सिद्ध न हुआ । अब दूसरा मन्त्र बता देगे । परन्तु भोले मनुष्य कीलने और भण्डारने का मतलब नहीं जानते हैं । इसलिए अपनी बुद्धि के अनुसार पाठक गण को वह रहस्य दिखाता हूं।
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