SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऊषा जैसी (निर्मल)माज है, वैसे ही कल थी,और कल भी होगी। ५–कोऽहं का अर्थ अब कबीर-पन्थियों के घर के 'कोऽहं' शब्द का भी भावार्थ कहते है। 'को' कौन हूं 'ह' मैं; ऐसा अर्थ इसका होता है । किसी के पालम्बन अर्थान् दूसरे के सहारे से वृत्तियों का थामना उसका नाम पिपीलिका मार्ग है, और निरालम्ब होकर आत्मा में स्थिर होना, वह विहंग मार्ग है। ____ अब मनुष्य जो अनहद-अनहद कहा करते हैं, उसका विचार किंचित् पाठकगण को दिखाता हूं, अनहद शब्द का अर्थ भी लगाता हूं। 'अनहद' इस शब्द में 'नत्र समास' है, इसलिये इसका अर्थ ऐसा है कि, नहीं है हद (सीमा)। जिसकी उसको अनहद कहते हैं । सो यह शब्द जिसके पीछे लगेगा वही वस्तु सीमाओं से रहित हो जायगी, अर्थात् उसका आदि और अन्त न होगा। जब नाद के साथ में लगाया जायगा तब 'अनहद नाद' ऐसा कहेंगे, इसलिये उसको चाहे शब्द कहो या नाद कहो। सो यह नाद-शब्द अजीव अर्थात् आकाश का है । 'शब्दगुणकमाकाशम्' ऐसा न्याय शास्त्र में कहा है और स्याद्वादी जिन धर्म में इस शब्द को पौद्गलिक कहा है। इस शब्द के दो भेद हैं-१ ध्वनिरूप, । २ वर्णरूप यह वर्णरूप में तो हिन्दी, संस्कृत भाषादि अक्षरों मैं होते हैं। और ध्वनिरूप, मेरी' बांसुरी, सारंगी सितार, पखावज आदि बाजों से अथवा हथेली, चुटकी आदि बजाने से होता है । आत्मा में लय होना, तथा उस जगह ध्वनि का. श्रवण करना असम्भव है। इसलिये ध्वनि का कथन जिज्ञासुओं के लिये रोचक वचन उपचार से है, क्योंकि आत्मलय होने में ध्वनि का कुछ काम नहीं। । ___ इस जगह ऐसी शंका उत्पन्न होती है, कि गोरखनाथ आदि योगिओं ने जिसको योगाभ्यास में सुना उसे अनहद नाद बताया है और उसे लोगों ने साखीपद में गाया है तुमने क्यों इसका निशेध किया है ? इस शंका का समाधान यह है कि हमने इस अनहद नाद निषेध नहीं किया किन्तु शब्दार्थ दिखाया है; क्योंकि इस अनहद शब्द को युजान-योगियों ने सुनकर गाया है गुरु गम से इसका भी भेद पाया है। अनहद नाद झूठा नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy