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________________ सच्चरित्रता ही सन्तों का आभूषण है। इसको बताते हैं, इसके ध्यान से परमात्मपद पाते हैं, हकार को सपा में लय करने से समाधि में समाते हैं। ३-'राम' का अर्थ ... यह शब्द क्रीडार्थक “रमु' धातु से सिद्ध होता है। इसका अर्थ यह है कि 'रमते इति' 'रामः' आत्मा में रमण करना; उसी का नाम राम है । इसलिये जो अपनी आत्मा में रमेगा, वह पापों से छूटकर परमात्मा हो जायगा । इस रमणरूपी राम से ही बाल्मीकि आदि अनेक मुनिजन आत्मा में रमण कर परम पद को प्राप्त हुए । अनेकों ने राम-राम गाया, उसी स्वरूप में रटना लगायी जिसने अपने स्वरूप में लय लगाई वही मोक्ष-पद पाया, जैसा इस राम शब्द का अर्थ था, वैसा हमने पाठकगण को दिखाया है । इस राम शब्द के अन्तर्गत 'रम्' शब्द भी है, परन्तु इसकी प्रसिद्धि कम है, इसे प्रत्येक मनुष्य नहीं जानता। 'हंस' का अर्थ गोरक्षपद्धति के प्रथम शतक के ४३ वें श्लोक में जीव इस मन्त्र का प्रतिदिन स्वतः ही दिन भर में २१६०० जाप करता है । और ४४ वें ४५ वे श्लोक तक इसकी ऐसी महिमा लिखी है कि मोक्ष के देने वाला यह ही अजपा गायत्री है । वे तीनों श्लोक यहां उद्धृत करता हूं षट्शतानि त्वहोरात्रे, सहस्राण्येकविंशतिः । एतत्संख्यान्वितं मन्त्रं, जीबो जपति सर्वदा ॥४३॥ अजपा नाम गायत्री, योगिनां मोक्षदायिनि । अस्याः संकल्पमत्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥४४॥ अनया सदृशी विद्या, अनया सदृशो जपः। अनया सदृशं ज्ञानं न भूतं न भविष्यति ।।४५।। अक्षर हं तथा स के मेल से हंस शब्द बना है। इसका अर्थ भी सोऽहं के समान समझे। - इनका अर्थ तो सुस्पष्ट है, अथवा इनकी छपी हुई पुस्तक में देखो। अन्तर्गत समेत इन पांच का वर्णन किंचित् दिखाया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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