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________________ स्त्री पर पुत्र की पीठ पीछे लकी बहुत प्रशंसा करो । सामने नहीं । अपरंच — इस अष्टांग निमित्त में अपने जीवन सम्बन्धि अनेक प्रश्नों का निर्णय पाने के लिये बड़ी सरल रीतियों का वर्णन होने से समझदार व्यक्ति स्वतः अपने जीवन में उपस्थित होने वाली उलझनों से छुटकारा पा सकता है और अर्द्धविद्गध ज्योतिषियों के चंगुल में फंसने से छुटकारा पा सकता है । यह अष्टांग निमित्त पूर्वधर मुनियों- आचार्यों द्वारा प्रतिपादित है इसलिये यह सर्वज्ञ के कथन तुल्य सर्वथा सत्य है । पर खेद का विषय है कि आज विज्ञान द्वारा जड़वाद के प्रसार और प्रचार के कारण अर्द्धविद्गध धन्धाधारी ज्योषियों द्वारा इस ज्ञान से लोग वंचित होते जा रहे हैं । एवं पूर्वाचार्यों द्वारा गुंथित इस विषय पर लिखे हुए ग्रन्थ रत्न प्रकाश में आये बिना अंधेरी अलमारियों तथा कोठरियों में पड़े-पड़े जीर्ण-शीर्ण होते जा रहे हैं अथवा दीमक ( उधई) की खुराक बन रहे हैं। अत: जैन शासन की वफादारी इसी में हैं कि लक्ष्मीपति सुश्रावक इस उपयोगी साहित्य के सर्जन और प्रकाशन के लिये उदारता पूर्वक आर्थिक सहयोग देकर अपनी लक्ष्मी से पुण्योपार्जन करें । सुज्ञेषु किं बहुनः । विशेष सूचना इस जगत में सब प्रारणी सुख चाहते हैं । विपत्ति तथा दुःख से छुटकारा पाने के लिये पीर-पेगंम्बरों, मन्त्रवादियों, साधु-सन्यासियों के चंगुल में फंसकर तथा देवी-देवताओं की मान्यतानों के चक्र में उलझ कर समय तथा धन का अपव्यय करके भी सुख शांति पाने के बदले परेशानियों से अधिक घिर जाते हैं और अन्त में श्रद्धा भ्रष्ट होकर मार्ग च्युत ही परेशानियों से ग्रसित जीवन व्यतीत करते रहते हैं । इसके लिये सम्यग्दृष्टि महायोगियों और चौदह पूर्वधारियों ने तथा आत्म साक्षात्कारी ऋषि मुनियों ने समस्त मानव जगत के उपकार के लिये अनेक मंत्रगर्भित स्तुति स्तोत्रों की रचना करने की कृपा की है। उन पर कल्पादि लिखकर उनमें गर्भित मंत्रों-यंत्रों-तंत्रों आदि की रचना, उनकी साधना और . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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