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________________ सुबह और शाम अर्थात् सदाकाल अाप सब प्रसन्नचित्त रहें। अब इसका अर्थ उतार कर दिखाते हैं, कि यह मन रूपी बन्दर । के साथ लगा हुआ है । सो यह कभी स्थिर अर्थात् खाली नहीं मन रूपी बन्दर के वास्ते जो कोई सद्गुरु मिले, और योग्य समझ कर यथावत् पालम्बन रूप बांस का गाड़ना बताकर मन रूपी बन्दर को शृंखला से बांधकर इस बांस पर चढ़ना उतरना बतावे, तो यह मन रूपी बन्दर भव्य जीव के वश में आवे दुर्गति से रुक जावेगा, आत्मा का स्वरूप यथावत् पावेगा, इसमें अनेक प्रकार के चमत्कार दर्शावे, या जो जिज्ञासा वाला चाहना करके लावे वह हो क्योंकि ऊपर लिखे दृष्टान्त अोर दार्टान्तिकके अनुसार मैंने कितने मनुष्यों की बतलाया था, और अनुभव भी कराया था, परन्तु जिज्ञासा अर्थात् चाहना बिना आगे को कुछ न पूछा । उतने ही में तृप्त होकर कर्तव्य छोड़ बैठे। सो यह बात जाति कुल के जैनियों के सिवाय और भी कितने ही मतावलम्बियों को ऊपर लिखे अनुसार बताया, अबलम्बन बताकर उनके मन को. ठहराया, परन्तु मैंने उनमें आत्मार्थ न पाया, क्योंकि उन्होंने मेरे को चमत्कार दिखाने को कहा इसलिये मेरा भी चित्त घबराया, अपात्र जानकर जो कुछ बताया उससे भी पछताया, आगे को बताने में मेरा दिल न हुलसाया। क्योंकि शास्त्रों में ऐसा लिखा है, कि जो जिज्ञासु आत्मार्थी विशेष चाहने वाला, शील, संतोष, क्षमादि गुणों करके सहित, निनय-सम्पन्न और श्रद्धा अर्थात् वचन के ऊपर विश्वास करने वाला हो और यदि गुरु परीक्षा के लिए अनेक प्रकार से दुर्वचनादि, ताड़ना, अथवा विपरीत आचरण करके उसके चित्त को विक्षिप्त करे, तो भी वह जिज्ञासु गुरु की चरण-सेवा, भक्ति, विनय, आदि से न्यून न हो, उसको ही वस्तु बताना। सर्वमतावलम्बी इस बात को अंगीकार करते हैं। और अपने-अपने जिज्ञासुओं को इस रीति से सुनाते भी हैं । परन्तु उन जिज्ञासुओं को गुरु वाक्य पर विश्वास न होने से लाभ नहीं होता। देखो जिस योगी में योगाभ्यास द्वारा मन-वायु को एक करके श्वास बढ़ाना अथवा घटाना ये दोनों प्रकार की शक्तियां हैं, उस पुरुष की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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