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________________ अहिंसा की साधना से वढ़कर दूसरी कोई साधना श्रेष्ठ नहीं है। [२१६ . प्रणायाम के तीन भेद एक तो पूरक, दूसरा कुम्भक, तीसरा रेचक । पूरक उसको कहते हैं कि वायु को ऊपर अर्थात् बाहर से अन्दर ले जाना। कुम्भक उसको कहते हैं कि श्वास को बन्द रखना अर्थात् न तो भीतर ले जाना और न बाहर निकलना। रेचक नाम उसका है, कि जो वायु रोकी हुई है, उसको बाहर निकालना। तीनों प्राणायाम करने की रीति इनकी रीति यह है कि प्रथम पद्मासन अथवा मूलासन लगावे, फिर चन्द्र अर्थात् डाबी [बाम] नासिका से वायु को खींचे-अर्थात् पूरक करे । फिर अंगूठा और अनामिका अंगुली से दोनों नासिका के छिद्रों को बन्द करे, जितनी जिसकी शक्ति हो उतने समय पर्यन्त इस माफिक करना चाहिये। और मूलबन्ध, जालन्धरबन्ध, उड़ियानबन्ध, इन तीनों को करे। .. फिर सींधे [दक्षिण] स्वर से वायु का धीरे-धीरे रेचन करे। परन्तु इस रीति से धीरे-धीरे रेचन करे कि जिसमें किसी तरह का शरीर को ज़ोर न पड़े। . फिर दक्षिण स्वर से धीरे-धीरे पूरक करे—अर्थात् प्राणवायु को खींचे। फिर दोनों नासिका के छिद्रों को बन्द करके यथाशक्ति कुम्भक करे। ... बाद चन्द्र [बाम] स्वर से बन्धपूर्वक धीरे-धीरे रेचन करे। फिर जिस नाड़ी से रेचन करे, उसी से ही पूरक करे। फिर यथाशक्ति कुम्भक करके बन्ध-पूर्वक दूसरी नाड़ी से रेचक करे। जब तक पसीना और कम्प हो तब. तक पूरक और रेचक करता ही रहे । परन्तु जिस नाड़ी से पूरक करे, उससे रेचक न करे, जिससे रेचक करे, उससे पूरक करले तो कोई हानि नही है । इस रेचक को जल्दी-जल्दी न करे-अर्थात् एक साथ न छोड़े; क्योंकि जोर से रेचक करने से बल की हानि होती है। इस रीति से जो अभ्यास करता है, उसकी नाड़ी तीन या पांच मास में शुद्ध हो जाती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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