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________________ शरीरका मोह छूट जानेपर परिषहों की चिन्ता ही नहीं रहती । [ २०५ टेढ़ेपन को छोड़कर सर्पिणी सरल हो जाती है, वैसे ही उस समय शीघ्र ही सरल हो जाती है । जब वह कुण्डली सरल हो गई तब कुण्डली के बोध से सुषुम्ना में प्राण का प्रवेश होता है । उस समय इड़ा और पिंगला को सहायता देने वाला जो प्रारण है वह सहायता देने में समर्थ नहीं रहता । इसलिए इड़ा पिंगला यह दोनों नाड़ी मरण प्राप्त होती है अर्थात् घर छोड़कर भाग जाती है । उस समय के आनन्द को तो उसके करने वाले ही जानते हैं, न कि लिखने, या वांचने वाले । जो इस आनंद को प्राप्त करेंगे, वे ही इनका अभ्यास करेंगे, उनको करने वालों का ही मोह, राग, द्वेषादि मिटेगा, आत्मा में उन्हीं का दिल डटेगा, ज्ञान दर्शन, चरित्र तीनों का मेल सटेगा, तब कर्मों के पटल आत्मा से हटेंगे। जिन्होंने इस आनन्द को पाया है उन्होंने ही पदों में गाया हैं । हमको श्री श्रानन्दधन जी का पद याद आया, इसका यहां उल्लेख करते हैं । "इडा पिंगला घर तज भागी, सुषुम्ना का घर वासी । ब्रह्मरन्ध्र मध्यासन पूरो, बाबा अनहद नाद बजासी ||१|| " ऐसा श्री आनन्दधन जी का फरमाना ( कथन ) है । इससे प्रतीत होता है कि वे इस मुद्रा के भी अभ्यासी थे । जिन्होंने ऐसा अभ्यास किया है, वे कब किसी के जाल में फंसते हैं ? आत्मा को भजते हैं और राग-द्व ेष को तजते हैं गच्छादिक के मद में नहीं धसते हैं । महामुद्रा के अभ्यास का विधान इसकी विधि यह है कि चन्द्र अंग अर्थात् वाम अंग से अभ्यास करे, फिर सूर्य अंग अर्थात् दक्षिण अंग से अभ्यास करे । परन्तु दोनों अंगों से अभ्यास बराबर करे, कमी बेशी न होने दे । फिर इसको विसर्जन कर दे । परन्तु इस बात का ध्यान रखे कि जब बाम अंग से अभ्यास करे तो दक्षिरण चरण को फैलावे, और ऊपर लिखी रीति से चरण के अंगूठे को दक्षिण हाथ से पकड़े और जब दक्षिण अंग से अभ्यास करे तब वाम चरण को फैलाकर बाम हाथ से चरण का अंगूठा पकड़े। इस रीति से दोनों अंगों में समान अभ्यास करे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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