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________________ समस्त भावों को प्रकाशित करता है । रीति से अभ्यास करे । इसके आनन्द को योगीश्वर भी कह नहीं सकते । अब मूर्छा कहते हैं कि पूरक अन्त में जालन्धरबंध बांधकर शनैः शनैः रेचन करे । इस कुम्भक का नाम मूर्छा है जो मन को मुच्छित करता है । प्लावनी कुम्भक यह है कि शरीर के भीतर भरी जो अधिक वायु, उस करके चारों तरफ से भर लिया है उदर जिसने, वह पुरुष अगाध जल में कमल पत्र के समान गमन करता है । यह रीति तीनों कुम्भकों की स्वयं आत्माराम योगी की बनाई हुई 'हठप्रदीपिका' में लिखी है । मुद्राओं का वर्णन अब इसके आगे मुद्राओं का वर्णन करते हैं, सो पहले जो 'हठप्रदीपिकादि ग्रंथों में उनके नाम लिखे हैं उस रीति से यहां नाम दिखाते हैं - १ महामुद्रा, २ महाबन्ध, ३ महावेध, ४ खेचरी, ५ उड़ियान, ६ मूलबन्ध, ७ जालंधर बंध, ८ विपरीतकरणी, ६ वज्रोली, १० शक्तिचालन । इस तरह हठप्रदीपिका और गोरक्षपद्धति आदि ग्रंथों में उडियानबंध, मूलबंध जालंधरबंध, इन तीनों को भी मुद्राओं में ही गिना है, सो इन तीनों बंधों की रीति ऊपर लिख चुके हैं। इन मुद्राओं में कई मुद्रा निष्प्रयोजन भी है । इस वास्ते जो मुद्रा सप्रयोजन हैं उनको दिखाकर फिर अपनी भी युक्ति उसमें कहेंगे । इसलिए पाठकगण ध्यान रखें कि पीछे लिखी मुद्रा उनके ग्रंथानुसार है । १ महामुद्रा वर्णन इस महामुद्रा की विधि यह है कि वाम ( बायां ) पाद की एड़ी को योनिस्थान में लगावे (योनि-स्थान का मतलब पहले दिखा चुके हैं सो वहां से देखो ) और दक्षिण चरण को लम्बा करके फैलावे, एड़ी जमीन पर लगावे, और अंगूठा, अंगुलियों को डण्डे की भांति ऊंची खड़ी करे, फिर जीमने (दक्षिण) हाथ का अंगूठा और तर्जनी अंगुली से जीमने पग के अंगूठे को पकड़े, और बन्ध-पूरक सुषुम्ना नाड़ी में धारण करे, और मूलबंध भी बांघ करके योनि स्थान को पीड़न करे । फिर जिह्वाबन्ध लगावे | जो कुण्डली सर्प के आकार सी डेढ़ी हो रही है; वह जैसे डण्डे के प्रहार से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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