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वीतरागी प्रत्य- द्रष्टा को उपाधि ही नहीं होती है ।
पखाली के करने वाले लोग केवल ठग और जड़ समाधि लगाने वाले होते हैं । इसके विषय में विशेष आगे बतलाया जायेगा ।
१० - त्राटक- वर्णन
इस त्राटक का स्वरूप यह है, कि दोनों नेत्रों की दृष्टि को किसी सूक्ष्म वस्तु पर स्थापन करे, और पलकों को न हिलाकर टकटकी लगाकर देखे, उस वस्तु से दूसरी जगह पर दृष्टि न जाने दे अथवा आंखों की पुतली को घुमाकर भी न देखे ( ) के बाल को देखे, उनके ऊपर दृष्टि ऐसी ठहरावे, कि आंख और नाक दोनों में से जल गिरने लगे । इसका नाम त्राटक है। इसके करने वाले को निद्रा, आलस्य कम होता है, और नेत्रों की ज्योति विशेष बढ़ती है, इसलिए इसको हमेशा करे । इस रीति से यह दस क्रियाएं बतलाई हैं ।
इन दस में से नौली त्राटक, गणेश क्रिया, और बागी इन चारों में तो जल का खर्च नहीं है और बाकी की छ: क्रियाओं में जल का खर्च होता है । इस बातों को सीखे और सीखने के बाद कुछ दिन तक अभ्यास करे । जब अभ्यास ठीक हो जाये तब छोड़ दे, और फिर काम पड़ने पर किया करे । उसमें भी शंखपखाली क्रिया केवल जानने मात्र है, उसका कुछ फल नहीं । बागीकर्म को प्रतिदिन करना उसका काम है, कि उसको पूरा आहार किये बिना न सरे । जो मनुष्य परिमित भोजन करता है, उसको कोई जरूरत नहीं । यदि काम पड़े तो कर ले। और गणेश क्रिया भी प्रतिदिन करना उसी के वास्ते है, कि जिसका मल अच्छी तरह से बंधा हुआ नहीं है और गुदा में लिपट जाता है । परन्तु जिसको दस्त बन्दूक की गोली की तरह लगे, और गुदा को लेपमात्र भी न लगे, उसको गणेश क्रिया करने
कोई आवश्यकता नहीं । नौली और त्राटक सदा ही करे, क्योंकि नौली कुंभक - मुद्रा, प्राणायाम आदि में विशेष सहायता देने वाली है । इसलिये उसे अवश्य ही करे | बागी और त्राटक जब इच्छा हो तब करे, परन्तु शेष क्रियाएं भोजन करने के पहले करे, भोजन करने के बाद करेगा तो नाना प्रकार के रोगों की उत्पत्ति हो जायेगी ।.
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