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________________ कोई साथ दे या न दे सद्धर्म का पालन अकेले ही करो। । अनामिका, इन दोनों अंगुलियों में से एक पर वस्त्र का दुकड़ा रखकर उस अंगुली को गुदा में डालकर चारों तरफ फिरावे । इस रीति से दो तीन बार करने से गणेशचक्र साफ हो जाता है, चक्र के ऊपर मल' नहीं रहता है। इस क्रिया के करने से गुदा की बीमारी नहीं होती है, और यह चक्र का . ध्यान करने में सहायता देता है। ८--बागीकर्म इस बागीकर्म का स्वरूप यह है कि जिस वक्त मनुष्य आहार अर्थात् भोजन कर ले, उसके एक घण्टे या दो घण्टे के बाद ऐसा जाने कि आहार का रस तो मेरे शरीर में परिणत हो गया होगा अर्थात् पच गया होगा और फोक बाकी रह गया होगा, उस वक्त गजक्रिया में जो रीति कही गई है, कि नीचे से वायु खींचकर या मुंह में उसी तरह अंगूठा डाल करके, उसको मुंह की राह निकालकर फेंक दें; ऐसा जो करे, उसका नाम बागीकर्म है। इस बागीकर्म के करने से पाखाना आदि जाने का काम नहीं रहता और स्वस्थ चित्त, अर्थात् पेट में भार न रहने से ध्यान ठीक होता है। परन्तु यह बागीकर्म उसके वास्ते है कि जिन पुरुषों का दिमाग अन्न खाकर ठीक नहीं रह सकता और पेट भरकर भोजन करते हैं, उसी पुरुष को बागीकर्म करना चाहिये, न कि थोड़ा खाने वाले को, क्योंकि जो थोड़ा ही खाने से सन्तुष्ट है, उसको तो किसी तरह की हानि नहीं, किन्तु जिनको बिना पूर्ण भोजन किये चित्त की चंचलता ही रहती है उनके वास्ते बागीकर्म अच्छा हैं । -शंखपखाली ___ शंखपंखाली नाम उसका है, कि जैसे शंख में ऊपर से तो पानी भरता जाये और नीचे से निकलता जाए, वैसे ही मुख से पानी पीता जाये और गुदा से निकलता चला जाय । इस शंखपखाली को वह मनुष्य कर सकता है . कि जिसको नौलीचक्र अच्छी तरह से करना आता हो; क्योंकि जिस समय उसको मुंह से जल पीना पड़ता है, उसी वक्त नौलीचक्र फिराने से अपान वायु को अधोरेचन अर्थात् नीचे को निकाल करके उस जल को गुदा की राह से निकालता चला जाता है, इसलिए इसको शंखपखाली कहते हैं । इस Jain Education International For Personat & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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