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________________ की कुछ बोले पहले विचार कर बोले । ३-ब्रह्मदातन क्रिया अब तीसरी ब्रह्मदातन क्रिया के स्वरूप का निदर्शन कराते हैं-सूत का डोरा अच्छी तरह बटकर कच्चे सूत के ऊपर लपेटे । सो ऐसा कड़ा लपेटना चाहिए कि तरपणी के डोरा जैसा हो जाए या रामस्नेही साधु जो कमर में कन्दोरा लगाते हैं वैसा कड़ा हो और फिर उसके ऊपर मोम लगावे और उस सूत के सदृश कूची को कर ले और वह बंधा हुआ सूत का डोरा सवा हाथ लम्बा होना चाहिए । उसको प्रातःकाल उष्ण पानी में भिगोकर गीला करके मुख में डाले, जब वह कागल्या के पास में आवे अर्थात् आगे को गले की और जावे तो उस समय थोड़ा-सा जोर देकर हाथ के सहारे से नीचे को दवावे। फिर वह ब्रह्मदातन स्वयं ही नीचे को चली जाती है। और उसको यहां तक ले जावे कि चार अंगुल बाकी रहे। तब उस बाकी चार अंगुल को हाथ की अंगुलियों से धीरे-धीरे वैसे घुमावे जैसे कान में रुई फेरी जाती है, और बाद में उसे निकाल ले फिर साफ करके रख दें, उसे ब्रह्मदातन कहते हैं । इस ब्रह्मदातन करने का प्रयाजन यह है कि जमा हुआ कफ इससे ढीला पड़ जाता है, और ग्रन्थि आदि इसके फेरने से फूट जाती है। जिस पुरुष को ऐसे कफ की शिकायत हो वह ब्रह्मदातन के बाद धोती करे, क्योंकि ब्रह्मदातन कफ को नहीं निकालता, कफ की गांठ को फोड़ देता है और धोती कफ को निकाल देती है। ४-गजकर्म अब गजकर्म के स्वरूप को कहते हैं-त्रिफला अथवा कोरा उष्ण श्री नाक से पीना शुरू करे और जितना पेट में समावे उतना पेट भर _फिर पेट को खूब हिलावे, और जिसको नौली करना आती हो तो ""शक करे। इसके बाद जिसको वायु नीचे से उठाना आता हो वह चन करके सर्व जल को बाहर निकाल दे, किंचित् भी पेट में न टाले से वायु खींचकर निकालने की रीति न मालूम हो तो र जमा ठकर दक्षिण हाथ की कूहणी घुटने (जानु-ढींचन) • चार एसे खीचे कि जैसे छाकर काकलल (तालु के पास लटकी हुई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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