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________________ ज्ञान (विद्या) और कर्म (आचरण) से ही मोक्ष प्राप्त होता है। [१६॥ दोनों नासा के छिद्रों में करे, इसी का नाम नेती है । इसके करने से नेत्रों की ज्योति प्रबल होती है और यह गज क्रिया में भी काम देती है । २-धोती क्रिया अब धोती के विषय में कहते हैं कि अच्छी मलमल जिसके सूत में गांठे आदि न हों अथवा और कोई कपड़ा हो, परन्तु बारीक होना चाहिए; वह कपड़ा चार अंगुल तो चौड़ा हो और सोलह हाथ लम्बा हो। उस कपड़े को उष्ण जल से भिगोकर निचोड़ डालें, फिर उसको झड़काकर एक छोर (सिरा) मुंह में देकर उसको जैसे ग्रास (कवा) निगला जाता है, वैसे निगलना शुरू करे यहां तक कि चार अंगुल छोड़कर सब निगल जाए। बाद में उसके कुछ थोड़ा-सा पेट को हिलावे, परन्तु नौली आदि क्रिया न करे, क्योंकि नीली आदि क्रिया करने से आंतों में और नलों में फंस जाने का भय है । हां, हठयोग प्रदीपिका में ऐसा लिखा हुआ है कि नौलीचक्र करे। - किन्तु यह क्रिया बहुत समझदारों के ही लिए है न कि साधारण बुद्धि वालों के लिए ; क्योंकि बेसमझ आदमी ऐसी क्रिया में कहीं-कहीं प्राण खो बैठते हैं और हमें यह प्रतीत होता हैं कि हठयोग प्रदीपिका वाले ने गुरु-परम्पराशून्य मनःकल्पित लिख दिया है । इनकी भ्रमपूर्ण विचारणा तो मुद्रा आदि कहते समय दिखलावेंगे। हमने जो पेट हिलाना लिखा है उसका तात्पर्य यह है कि सिद्धासन से धोती को निगले और निगलते समय उत्कटासन (उक्कडू) से बैठकर पेट को सतर करें और नीचे को भुककर अर्ध रेचन करे फि धीरे-धीरे खीचे, उतने में जो पेट का हिलना है उतना ही पर्याप्त कदाचित् खींचने में कपड़ा अटके तो, जितना मलमल या खाया हुआ वस्त्र वाहर है उसे फिर निगल जाए और फिर धीरे-धीरे निकाल निकल आवेगा । दुबारा निगलना उसी के लिए है कि जिसके और अटके ; न कि उसके लिए कि जिः ।। धोती क्रिया के करने से. कफ हो उस समय धोती क्रिर. स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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