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________________ १३] आत्मा को शरीर से पूषक जान भोगलिप्त शरीर की उपेक्षा करो। पेटका खाकर ऊपर से पानी पीने से मीठा लगता है। अन्य वस्तु के संयोग से जल' को कषायला कहते हैं परन्तु है वास्तव में मीठा । इसलिये अरिहंत तत्त्व को मीठा कहा है। जैसे जलतत्त्व के स्वाद की अज्ञान दशा से खबर नहीं पड़ती, वैसे ही अज्ञान के कारण जिन तत्त्वों का हम वर्णन करते हैं उनको छोड़कर पृथिवी आदि तत्त्वों को अंगीकार किया, देखादेखी लोगों ने इन्हीं को तत्त्व लिखा है। अरिहंत तत्त्व का वर्तुल आकार दूसरी रीति से हैं जैसे बड़ का पेड़ नीचे से संकुचित होकर ऊपर से विस्तीर्ण होता है और जैसे जल धारारूप से निकलकर जमीन पर फैल जाता है, वैसे ही अरिहंत-रूप तत्त्व के मुखारविन्द में से धारारूप त्रिपदी निकलने से गणधरादि शिष्यरूपी जमीन पर विस्ताररूप द्वादशांगी रचना करते है । इत्यादि अरिहन्त तत्त्व के गुण जानों, बाकी गुरुगम से सब पहचानों, अब इसके आगे सिद्ध तत्त्व का विवेचन करेंगे। २-सिद्धतत्त्व सिद्ध का वर्ण लाल इसलिये है कि जैसे अग्नि सर्व वस्तु को भस्म करती है वैसे ही सिद्ध भी कर्मरूप वस्तु को जलाकर भस्म कर देता है । इस अनुमान से अग्निरूप अलंकार के सदृश रंग लाल कहा है । परन्तु सिद्ध में रंग कोई नहीं, क्योंकि शास्त्रों में ऐसा कहा है कि सिद्ध परमात्मा में वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श कोई नहीं, ऐसे ही अग्नि में भी कोई तरह का रंग नहीं है, क्योंकि जो अग्नि में लाल रंग होता तो अग्नि के बुझने के बाद राख में भी कुछ लाली रहनी चाहिए । इस लिये अज्ञान दशा से लोगों को उपाधि से लाल रंग प्रतीत होता है। अब सिद्ध रूप अग्नि का चार अंगुल प्रमाण इस प्रकार है कि सिद्ध में मुख्यतया चार गुण अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चरित्र और वीर्य हैं । इन गुणों से ही चार अंगुल लेते हैं । और दूसरा इसमें यह भी प्रमाण है कि परमात्मा और जीव में कोई भेद भी नहीं है, केवल उपाधि (कर्म-संयोग) से भेद है। इसलिए जिसमें जो गुण होता है उसमें वह गुण सत्तारूप से बना रहता ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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