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मन चाहा लाभ न होने पर झंझलाएं नहीं।
(नीम के पत्रादि) ग्रहण न करे । २-भांग, गांजा, तमाकू आदि कोई तरहे । का नशा अंगीकार न करे, क्योंकि जो नशा करनेवाला होगा, वह बकवृत्ति (बगुला वृत्ति) से लोगों को ध्यान दिखावेगा।
३-आम्ल-खटाई, इमली, कच्चा आम, जामुन, जमेरी, निम्बू, नारंगी आदि नाना प्रकार की खटाइयां हैं, इन्हें ग्रहण न करें, लाल मिरच भी बहुत न खाय, बहुत लवण भी न खाय, बहुत गरम भोजन न खाय क्योंकि ये रक्त-विकार द्वारा स्वास्थ्य को हानिकारक हैं । एवं ऐसी वनस्पतियां कन्दमूलादि अनन्तकाय जो इन्द्रियों को विकार पैदा करनेवाली हैं, न खानी चाहिये । इन्द्रियों को कंदमूल हरित-शाकादि पुष्ट करते हैं और पुष्टि विकार का हेतु है । इसे भी योगी को त्याज्य समझना चाहिये।
योगी तिल, सरसों, मधु (शहद), मदिरा, मांस, इन सबका त्याग करे छाछ, कुलथी, तिलपापड़ी, बासी अन्न, सीरा, सेकी हुई लापसी और कांजी आदि को भी अंगीकार न करे । शीघ्रता से गमनागमन (जाना आना), भागना, अग्नि का सेवन करना, और स्नानादि भी न करे। साधना के समय बहुत तपादि भी न करे, और बहुत मनुष्यों से परिचय भी न करे, बहुत बोलना भी न चाहिये। .
योगी के काम में आने वाली वस्तुएं - गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, सांठी के चावल, मूंग की दाल, तुबर की दाल, उड़द की दाल, दूध, घृत, मीठा सभी ले सकता है, परन्तु मीठा नित्य न खाय, और लड्डू , जलेबी, सीरा, लापसी, घेबर, कलाकन्दादि इस योग. साधनेवाले को बिल्कुल खाने के लिये निषिद्ध है। कारणवशात् सोंठ, पीपर, काली मिरच, जावत्री आदि अंगीकार कर सकता है और ऐसा आहार करे कि जो जल्दी पच जाय। बल्कि रोटी लूखी (खुश्क) खाय, जहां तक बने वहां तक भिक्षा में भी रोटी रूखी लावे, क्योंकि चुपड़ी हुई रोटी गरिष्ठ होती है, पचने में दुर्जर होती है और गरिष्ठ वस्तु के खाने से आलस्य भी आता है। ऊपर लिखी चीजों का संयोग भिक्षा में न मिले तो चना सेका
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