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________________ अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण भद योग तीन प्रकार का है - इच्छायोग, शास्त्रयोग, सामर्थ्य, प्रतिज्ञायोग इच्छायोग अपने ज्ञानावरणादि कर्मों के तथाविध क्षयोपशम से सुने हुए शास्त्रों और उनके अर्थ से योग का ज्ञान हो जाने पर या ज्ञान प्राप्त न होने पर उसका ज्ञान प्राप्त करने की और उस योग को ग्रहरण करने की इच्छा करनी, परन्तु प्रमाद से कार्य में उसको परिणत न करना ही इच्छांयोग है । R] शास्त्र योग जो पुरुष योग का ज्ञान हो जाने पर यथार्थं स्वरूप में विकथादि का त्यागी, अप्रमादी, धर्म-व्यापार के योग्य, श्रद्धावान, तीव्र ज्ञान से संयुक्त होकर वचनों का वृथा भाषण न करे, और मोह के कम होने से सत्य प्रतीति वाला हो, तथा कालादि विकल्पनीय बाधाओं से प्रतिचारादि दोषों को भी जाने, परन्तु ठीक-ठीक उन प्रतिचारों का त्याग न कर सके इसे शास्त्र - योग कहते हैं । अपने जीवन का दुरुपयोग न करे तो उसमें रही हुई प्राणशक्ति उसे कितना पूर्ण आयुष्य देगी इसका निर्णय करना चाहिए। यदि इस बात का निर्णय कर लिया जावे तो उस मनुष्य को दोषज अर्थात प्रयोग्य दुर्व्यसनों से आयुष्य को जो हानि पहुंचे जैसे कि अकस्मात् रोग, अव्यवस्थित जीवन श्रादि संयोग जो आयुको घटाते हैं और पूर्णायु भोगने में कमी करते हैं। ऐसे संयोग कि जिनका प्रतिकार हो सकता हो उसके लिए योग्य उपाय करना चाहिए जिससे पूर्ण आयु भोगने के भाग्यशाली बनें । ३ – मनुष्य अपनी बुद्धि के अनुसार अपना जीवन किन साधनों से प्राप्त करेगा, उसमें उसे सफलता मिलेगी, कीर्ति संपादन करेगा या प्रकृतिदत्त शक्ति का सदुपयोग किस प्रकार करेगा ? इन प्रश्नों का अच्छी तरह निर्णय कर सकता हो तो इसे जान कर वह मनुष्य उत्साहपूर्वक हिम्मत से तथा दृढ़ श्रद्धा से आगे बढ़कर अपने जीवन को उपयोगी और यशस्वी बना सकता है । इसलिए निमित्त शास्त्र यह दैवी शास्त्र मनुष्य का उपयोगी और उसके जीवन को सुन्दर बनाने वाला शास्त्र कहा हुआ है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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