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________________ एक बार भूल होनेपर उसकी पुनरावृत्ति न करो । उर्ध्वगामिनी तेह थी, नाड़ी दस तन मांहि । गामिनी दस सगुण, लघु गिनत कछु नांहि ॥ ४३४ ॥ दो दो तिरछी सहु मिली, चतुर्विंशति इम जान । दस वायु प्रवाहिका, प्रधान ये मन आन ।। ४३५ । अर्थ - कुंडलिनी नाड़ी में से निकलकर दस बड़ी नाड़ियां ऊपर की ओर गयी हैं और दस बड़ी नाड़ियां इस कुंडलिनी में से निकल कर नीचे की ओर गई हैं। यहां पर छोटी नाड़ियों में से शाखा रूप निकली हुई हैं – ४३४ दो-दो नाड़ियां इसी कुंडलिनी में से तिरछी ( दो दांयीं तरफ और दो बांयी तरफ ) निकली हुई हैं कुल मिलाकर चौबीस बड़ी नाड़ियां जाननी चाहिए । इन चौबीस नाड़ियों में से दस नाड़ियों वायु प्रवाहिका हैं – ४३५ न city (विश्व व्यापी विद्युत शक्ति) भी कहते हैं । प्रकृति के निगूढ़ विधान के अनुसार यह प्रचंड शक्ति शरीरस्थ मूलाधार चक्र में सोयी हुई रहती है । असंयमी साधकों को जो Passion proof (मनोविकार का प्रभाव जिस पर न पड़ता हो ऐसा ) नहीं हुआ है - सावधानी के साथ तथा सद्गुरु का सानिध्य प्राप्त हु बिना इस शक्ति को जागृत करने की चेष्टा करनी चाहिए । इसलिए अष्टांग योग का प्रथम भाग यम, नियम - सत्य, संयम, संतोष, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह इत्यादि - रखा गया है । इस कुंडलिनी की प्रचंड शक्ति को जगाने का काम इस गुप्त विद्या के सद्गुरु के ही तत्वावधान में होना चाहिये । नहीं तो लाभ की बजाय हानि होना ही संभव है । मूलाधार चक्र इस कुंडलिनी का सुषुप्ति स्थान है । मनुष्य की पिंड देह में (जिसे Etheric body कहते हैं ) स्थूल शरीर के विशेष- विशेष प्रत्यंगों से सम्बद्ध जो छः चक्राकर घूमने वाले शक्ति केन्द्र हैं, मूलाधार उन्हीं षट् चक्रों में से एक है । मूलाधार ( मेरुदण्ड के निम्न भाग में अवस्थित है । उसी चक्र के अन्तः स्तल में सर्पाकार अग्नि - कुंडलिनी शक्ति ढाई वलयाकार में सुषुप्त रहती है । इस शक्ति को जागृत करने की विधि विस्तारभय से तथा सद्गुरु के तत्वावधान के बिना जागरित करने से हानि की संभावना से नहीं दी है । विशेष जानकारी के लिए सद्गुरु के पास जावे | अनुसंधान के लिए देखें टिप्पणी नं० ७३ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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