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धर्मकी धुराको खींचनेके लिए धन की क्या आवश्यकता है ? थ-विस्तारपूर्वक जानने के इच्छुक ज्ञानार्णव नामक ग्रन्थ से इसका स्वरूप जान सकते हैं। यहां पर विस्तारपूर्वक लिखने से बहुत बड़ा ग्रन्थ हो जायेगा । अतः हमने संक्षेप से ही वर्णन किया है-४३०
शरीर में नाड़ियां देही मध्य नाड़ी तणो, बहु रूप विस्तार । पिंड स्वरूप निहारवा, जानो तास विचार ॥ ४३१ ॥ . . वट शाखा जिम विस्तरी, नाभि कन्द थी जेह। : . भेद हुताशन जानजो, पान निसा तिम तेह ॥ ४३२ ।। है भुजंगाकार ते, वलइ 'अढाई तास ।
जान कुंडली नाड़ी ते, नाभि मांहि निवास ॥ ४३३ ॥ अर्थ-इस देह में नाड़ियों का खूब विस्तार है। देह का स्वरूप जानने के लिए उन नाड़ियों को जानना परमावश्यक है-४३१ __नाभि के मूल में से वट शाखाओं के समान फैली हुई बहुत-सी नाड़ियों (७२००० नाड़ियों) को जानना चाहिये । उन नाड़ियों के मूल में सोई हुई अग्नि रूप शक्ति है-४३२
वह शक्ति नाभि में भुजंगाकार (सर्पाकार) कुंडलिनी नाम की नाड़ी है जो कि अढ़ाई अांटे देकर सोई हुई है । नाभि उसका निवास स्थान है-४३३
७७-कुंडलिनी सर्पाकार या वलयाकार शक्ति कही जाती है, क्योंकि इसकी गति वलयाकार सर्प की सी है। योगाभ्यासी यति के शरीर में यह चक्राकार चलती है और उसमें शक्ति बढ़ाती है। यह एक वैद्युत अग्निमय गुप्त शक्ति है । इस कुंडलिनी की गति प्रकाश की गति की अपेक्षा भी अधिक तेज है । मैडम ब्लैवेट्स्की ने कहा है- 'Light travels at the rate of 185000 miles a second, Kundalini at 345000 miles a second.' अर्थात् प्रकाश १८५००० मील प्रति सेकिण्ड की गति से चलता है और कुंडलिनी ३४५००० मील प्रति सेकिण्ड की चाल से चलती है। पाश्चात्य लोग इस कुंडलिनी को Serpent-fire (सर्पवत् वलयान्विता अग्नि) कहते हैं । तथा Cosmic Electri
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