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________________ अनुचित स्थानपर मत बैठो, पानी की थाह जाने बिना नदी में में कुली शांति संभव नहीं है। आत्मिक आधि-व्याधियों रोगों का मुख्य निदान जन्ममरणादि का कारण कर्मबन्ध के अतिरिक्त और कोई दृष्टि गोचर नहीं होता। वास्तव में इस कर्मबन्ध के कारण से ही जगत में सब प्राणी मानसिक, कायिक, वाचिक, आध्यात्मिक, दैविक, आधिभौतिक इत्यादि दुःखों को न चाहते हुए भी विवश होकर सहन कर रहे हैं। इस कर्मबन्ध रूपी राजरोगों के निदान (कारणों) को नाश करने के लिये तथा अपूर्व शांति प्राप्त करने के लिये भिन्नभिन्न धर्म सम्प्रदायों के धर्म गुरुओं, आचार्यों, तीर्थंकरों आदि ने अपनी योग्यता और बुद्धि पूर्वक उपाय बतलाये हैं। __कहने का सारांश यह है कि यह आर्यावर्त-भारत प्राचीन समय से ही इस आध्यात्मिक विद्या की पराकाष्टा तक पहुंचा हुआ है। इसकी पावन भूधरा पर अनेकानेक महापुरुष इस विद्या के पारगमी हो चुके हैं । अनेक लब्धियों, सिद्धियों, निधियों के चमत्कारों के योग से नास्तिकं लोगों पर भी आत्मा की अस्तित्वता की गहरी छाप डालने वाले महात्माओं की भी कमी नहीं थी। प्रत्यक्ष रूप से पुनर्जन्म का अनुभव कराने वाले जातिस्मरण ज्ञान धारक होकर अन्य मानवों को पुनर्जन्म के विषय में निश्चय श्रद्धा उत्पन्न कराते थे। योगबल से भूतभविष्यत और वर्तमान काल सम्बन्धित विप्रकृष्ट दूर वस्तु का संशय दूर कर आत्मा की ज्ञान आदि अनन्त शक्तियों का बोध कराते थे । ऐसे अनेक रत्न पुरुषों की धारक भारत-मातृभूमि आज जड़ विद्या के उपासकों के प्रभाव से शोचनीय स्थिति में आ चुकी है । अध्यात्म विद्या का प्रचार . शून्यवत होता जा रहा है। वह भारत जड़विद्या (विज्ञान) की शोध खोज की दौड़ में अध्यात्म विद्या को भूलता जा रहा है। यदि ऐसा ही रहा तो आत्मभान को भुलाकर और सच्चरित्रता को खोकर मानव समाज अनाचार के गर्त में . पड़ता जा रहा है और पड़ता जायेगा। - ऐसा अनुभव होता है कि वर्तमान काल के दूषित वातावरण में भी यदि कृपाल योगी महात्मा लोग न बचावेंगे तो जड़वाद का साम्राज्य छा जाना संभव है । सुख प्राप्ति के लिये मानव योग विद्या और आत्मविद्या के अभ्यास को भुला कर अवनति की ओर जा रहा है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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