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________________ काशील व्यक्ति को समापि नहीं मिलती है। -(१) यदि आठ पहर तक (दिन-रात-चौबीस घंटे) सूर्य स्वर ही चलता रहे बीच में बिल्कुल न बदले तो तीन वर्ष की आयु जाननी चाहिए-३५१ रोग हो। - (५) यदि सूर्य चन्द्र एक-एक नाड़ी में वारी-वारी डेढ़-डेढ़ घण्टा वायु चले तो लाभ और पूजा आदि फल हो। (६) विषुवत् समय में जिसकी अांखें फरकें तो वह एक दिन रात में मृत्यु पावे । वायु के विकार से फरके तो उसका ऐसा फल नहीं। पर स्वाभाविक फरके तो उसका फल होता है। (७) दिन में पांच संक्रांति' बीतने के बाद यदि वायु मुख से चले तो मित्र हानि, धन की हानि, निस्तेज आदि सव अनर्थों को प्राप्त करे, मृत्यु के बिना। (८) तेरह स्वर सक्रांतियों के बाद वायु यदि बाईं (डावी) नासिका में से चले तो वह रोग और उद्व गादि होने की सूचना है। (8) मगसिर सक्रांति काल से लेकर यदि एक ही नाड़ी में पांच दिन तक निरन्तर पवन चलता रहे तो उस दिन से अठारहवें वर्ष मृत्यु होगी। (१०) शरद् सक्रांति (आसोज मास की सक्रांति) से एक ही नाड़ी में पांच दिन तक पवन चले तो उस दिन से पन्द्रहवें वर्ष में मृत्यु हो । (११) श्रावण सक्रांति से पांच दिन एक ही नाड़ी में पवन चले तो बारहवें वर्ष मृत्यु हो । (१२) जेठ महीने की सक्रांति के दिन से दस दिनों तक पवन एक ही नाड़ी में चले तो नवें वर्ष मृत्यु हो । (१३) चैत्र मास की सक्रांति से पांच दिन एक ही नाड़ी में पवन चले तो छठे वर्ष मृत्यु हो । (१४) माघ सक्रांति पांच दिन तक एक ही नासिका में से पवन चले तो तीन वर्ष के अन्त में मृत्यु हो । नोट १-बारह घण्टों का दिन और बारह घण्टों की रात हो तो वह विषुवत् समय कहलाता है । कोई विषुवत् काल का ऐसा अर्थ करते हैं कि सूर्य और चन्द्र नाड़ी एक साथ दोनों चलें तो वह विषुवत काल है। नोट २-एक नाड़ी से दूसरी नाड़ी में पवन जाय उसे स्वर सक्रांति कहते हैं। नोट ३-शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से स्वरोदय में मास की सक्रांति होती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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