SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञान आत्मा का भाव (गुण) है अत: उससे भिन्न नहीं है। युद्ध के विषय में प्रश्न दोहा-सन्मुख° उर्ध्व दिशा रही, युद्ध प्रश्न करे कोय। सम अक्षर शशि सुर हुआ, जीत तेहनी होय ॥२६॥ पूछे दक्षिण पूठ थी, दूत प्रश्न करे कोय । विषमाक्षर भानु हुआ, खेत विजय लहे सोय ॥२७०।। युद्ध युगल की पूर्ण दिशी, रही प्रश्न करे कोय । प्रथम नाम जस उच्चरे, जीत लहे नर सोय ॥२७१॥ . रिक्त पक्ष में आय के, मिथुन युद्ध परसंग ।। पूछत" पहिला हारि है, दूजा रहत अभंग ॥२७२।। युद्ध प्रयाण के विषय में प्रश्न करत युद्ध परियाण वा, रिक्त मांहि लहे हार । अल्प बली भूपति थकी, महाबली चित्त धार ॥२७३॥ . ६०-पूर्णे पूर्व स्य जयो रिक्ते वितरस्य कथ्यते तजज्ञैः । उभयोयुद्धनिमित्ते दूते नाशंसिते प्रश्ने ।।४७।। (ज्ञानार्णवे) अर्थ-कोई दूत पाकर युद्ध के निमित्त भरे स्वर में प्रश्न करे तो पहले पूछने वाले की जीत हो। यदि रिक्त (खाली) स्वर में पूछे तो दूसरे की जय हो और दोनों चलें तो दोनों की जय हो-४७ . ६१-जयति समाक्षरनामा वामावाहस्थितेन दूतेन । विषमाक्षरस्तु दक्षिणदिक्संस्थेनास्त्रसंपाते ॥४६॥ (ज्ञानार्णवे) अर्थ-दूत पाकर जिसके लिए पूछे उसके नाम के अक्षर सम हों (दो चार, छः, चौदह इत्यादि) और बांई नाड़ी बहती हुई की तरफ खड़ा होकर पूछे तो शस्त्रपात होते हुए भी जीते तथा जिसके नाम के विषमाक्षर (१, ३, ५ इत्यादि) हों और दाहिनी नाड़ी बहती हुई में खड़ा रहकर पूछे तो उसकी भी जीत हो । इस प्रकार जय पराजय के प्रश्न का उत्तर कहें-४६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy