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बुद्धिमान ज्ञान प्राप्त करके नम्र हो जाता है। इसलिए सुखमना स्वर में योगाभ्यास, प्रभु का ध्यान, आत्म तत्त्व विचारणा, संसार से उदासीनता भाव तथा प्राणायाम आदि करना चाहिये, क्योंकि केवल सात दिन में ही अजीर्ण से छुट्टी पा जावेंगे ।
(७) हिलते हुए दांतों को मजबूत करना:-जिसके दांत हिलते या दुखते हों उसे पाखाना (शौच) और पेशाब (लघुशंका) करते समय ऊपर नीचे के दोनों दांतों की पंक्तियों को ज़ोर से दबाकर रखना चाहिए । इस प्रकार थोड़े समय करने से दर्द सम्पूर्ण शांत हो जाता है और हिलते हुए दांत भी ठीक हो जाते हैं।
(८) दूसरे रोगः-जैसे कि छाती, कमर, पेट आदि शरीर के कोई भी भाग पर दर्द होता हो तो उस समय जो स्वर चालू हो उसे एकदम बन्द कर दें। ऐसा करने से चाहे कैसा ही दर्द हो वह थोड़े ही समय में बन्द हो जायेगा।
(९) श्वास-दमा:-जब श्वास का उपद्रव शुरू होता मालूम पड़े और श्वास नली धमनी के समान फूलती मालूम पड़े तब जो स्वर चालू हो उसे एकदम बन्द कर देना चाहिए। ऐसा करने से १०-१५ मिनिट बाद आराम आ जावेगा। इस रोग को जड़ से दूर करने के लिए एक महीने तक चालू स्वर को बन्द करके दूसरा स्वर चलाने का अभ्यास करें। जितना बन सके उतना अधिक समय तक नित्यप्रति चालू श्वास को बन्द कर दूसरे स्वर को चलाने के अभ्यास से श्वास का रोग अवश्य मिट जायेगा।
() कुछ आवश्यक उपचार :-(१) परिश्रम से थकावट उतारने के लिए अथवा ग्रीष्म ऋतु के सूर्य की गरमी से शांति पाने के लिए थोड़ा समय दाई करवट लेट जाने से थकावट और गरमी से शांति मिलेगी। (२) नित्य भोजन करके चन्दन की कंघी से बाल' संवारने से सिर रोग, वायु रोग मिट जाता है,
और बाल काले रहते हैं, जल्दी पकते नहीं हैं । (३) नित्य आधा घंटा पद्मासन से बैठकर दांतों के मसूड़ों में जीभ चिपटा कर रखने से कोई भी रोग नहीं होता, शरीर अधिक से अधिक स्वस्थ होता जाता है । (४) नित्य आधा घंटा सिद्धासन से बैठकर नाभि पर दृष्टि स्थिर करने से भयंकर से भयंकर स्वप्न - दोष हमेशा के लिए मिट जाता है । (५) सुबह आंख खुलते ही जो स्वर चलता
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