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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा २९ गाजर-लहसुन- आदि अनंतकाय जीवों को खानेवाले स्थानकवासी संतो को अहिंसा धर्म पर प्रेम है ऐसा कौन कहेगा ? रही बात जड़ की । अरे भाई ! सूत्र की किताब भी जड़ है, पर ज्ञान देती है, इसलिए ज्ञानगुण के कारण हम इनका आदर करते है । हाँ ! सूत्र की किताब का कोई अज्ञानी आदर नहीं करेगा या उनसे उसको ज्ञानगुण प्राप्त नहीं होगा, क्या इससे शास्त्र का इन्कार करना या विरोध करना उचित है ? तीर्थंकर की मूर्ति श्रद्धावन्त के लिए तो साक्षात् तीर्थंकर है, वे उनका आदर करेंगे । जब कि अज्ञानी, मिथ्यात्वी को यह जिनमूर्ति ज्ञानादि गुणदायक नहीं दिखे, इसमें जिनमूर्ति का क्या दोष है ? जैसे सूत्र-शास्त्र जड़ होते हुए भी आदरणीय है, वैसे जिनमूर्ति भी आदरणीय है । जिस प्रकार जड होते हुए भी गुरु की फोटो व गुरु की मूर्ति स्थानकवासी संत आदरणीय मानते हैं, इसी प्रकार । 1 स्थानकवासी संतो ने अज्ञान व मोहनीय कर्म के वश होकर ही आगम सूत्रों के अमुक शब्दों के अर्थ बदलकर या मूलशब्द बदलकर या कल्पितअसत्य अर्थ कर अपनी मूर्तिपूजा विरोध की मान्यता पुष्ट की है...... हम मूर्तिपूजक जैन मूर्तिपूजा की मान्यता का इसलिए स्वीकार करते हैं क्योंकि श्री जैनागमों में सिद्धायतन, जिणघर, चैत्यवंदन, चैत्य, आदि शब्दों से इनका उल्लेख हैं । आज हमारे सामने साक्षात् तीर्थंकर भगवान विद्यमान नहीं है, अत: इनकी अनुपस्थिति में इनकी प्रतिकृति अर्थात् प्रतिमा के सामने गुणगान, पूजा, भक्ति, बहुमान, आदर आदि कर अपनी भावनाओं की पूर्ति करते हैं । जिसका एक मात्र उद्देश्य है - तीर्थंकर भगवान में श्रद्धा, आस्था, गुणानुराग बढे, जो कि सम्यग्दर्शन की पुष्टि व निर्मलता का कारण है । हम मूर्तिपूजक जैन - हिंसा करते ही नहीं है । अपार दयालु है I पर जिनभगवान की पूजा हेतु हिंसा न चाहते हुए भी हो जाती है, जिसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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