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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ-७
३०३ पर छिटकाव करने से जराविद्या का प्रभाव विनष्ट हो गया । पुनः सैन्य सज्ज बनने से श्रीकृष्ण ने शत्रु पर विजय पाया, जिसके हर्ष में आकर उन्होंने शंख बजाया तब से वहाँ पर गाँव का नाम शंखेश्वर प्रसिद्ध हुआ
और मूर्ति भी शंखेश्वर पार्श्वनाथ के रूप में सुप्रसिद्ध बनी, आज शंखेश्वरतीर्थ में वह मूर्ति विश्वभर में सुविख्यात, अतिप्राचीन एवं महाचमत्कारिक मानी जाती है ।
पुरुषादानी श्री स्थंभव पार्श्वनाथ भगवान की भव्य मूर्ति के स्नात्रजल से नवांगी टीकाकार श्री अभयदेव सूरिजी का कुष्ट रोग दूर हो गया था।
श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरिने कल्याणमंदिर स्तोत्र की रचना करते हुए शिवलिंग का प्रस्फुट होकर श्री अवंति पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रगट हुई और जिनशासन की अद्वितीय प्रभावना हुई ।
ऐसे एक नहीं, हजारों दृष्टांत है, जिनके आदर्शों से हमारे में भी श्रद्धा और भक्ति के साथ प्रभुमूर्ति के श्रेष्ठ आलंबन के प्रति भावुकता बनी रहती है।
__ आइए, हम सब भावात्मक बनकर प्रभुप्रतिमा से प्रवाहित होता शांतसुधारस का अनुभव कर तृप्त बनें ।
कलापूर्णसूरि प्रवचन सुधा पुस्तक
के कुछ अंश
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