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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ-४
२८३ १८ १० सोमिला दवट्याए एगे अहं नाणदंसण झये १९८ नाणावरणीय- तंजहा अभिणि बोहिय नाण
१ दो नाणदो अलाण चत्तारी नाणातिण्णे अमाण १ लेसादिहि नाणे, अनाणे, दिट्टि विहावि तिनि नाणा
अन्नाणा २४ १२ दो नाणा, दे अनाणा सम्मामिच्छा दिट्वि दो अण्णाणा
नियमा १२ नाणा सठिय पन्नत्ता......तिन्नि नाणा, अनाण्णा
२० तिनि नाणा, निन्नि अनाणा २४ २० नाणी विअन्नाणी दोनाणी दो अनाणीदो अनाणी
६ तंजहाः - नाण पुलाये दंसण पुलाये, नाण पडिसेवणा
. नाणदंसणघरे २५ ७ जाति संपन्न कुल संपन्न विनय संपण्णे, नाण संपण्णे २६. १. जीवाय ले सपक्खिय दिट्ठि अनाण नाण सण्णाओं
उपरोक्त सूची में भगवती सूत्र के अंदर से एकसो से भी अधिक प्रमाण उदाहरण दिये है जिसमें आप देख सकते है कि जगह जगह पर जहा भी "ज्ञान' का विषय आया है वहां "ज्ञान शब्द का ही उपयोग हुआ है ज्ञान के लिये (चेइय) चैत्य शब्द का उपयोग हुआ नहीं जैसे कि अप्पडिहय वरनाणदंसणधरे परंतु चेइय दंसणधर नहीं है इसी तरह नाणी अन्नाणी है परंतु चेइय अचेइय नहीं है ऐसे ही
ओहीनाणी है परंतु ओही चेइय नहीं है केवल नाणी है परंतु केवली चेइयाणी नहीं है यदि चेइय शब्द का अर्थ ज्ञान भी होता तो इन एक सौ से अधिक प्रसंगो में दस बीस प्रसंगो में तो चेइय शब्द का प्रयोग अवश्य होता जोकि नहीं है एक बार भी नहीं है पूरे सूत्र में नहीं है अपनी मान्य परंपरा से कुछ समय के लिय तटस्थ होकर आगम प्रमाणों पर ध्यान देकर विचार किजीयेगा।
चैत्य शब्द के प्रयोग की सूची भी साथ में है देख लिजीयेगा।
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