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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ-३ स्पष्टिकरण मानव भोजन मीमांसा में मिल जाएगा।
उदयपुर से जो पुस्तक प्रकाशित हुई थी उसमें स्थानकवासी मुनिराज का चिंतित अवस्था का एक चित्र छपा हुआ था, जिसे देखकर स्थानकवासी समाज ने विरोध किया था, हमने भी विरोध किया था, मुनिराज का चित्र देखकर स्थानकवासी समाज के लोगों की भावनाएं भड़की थी, जिसका विरोध हुआ। अतः चित्र देखकर लोगों की भावनाएं बदलती है चित्र भी जड़ है परन्तु चित्र अनुसार अच्छी या बुरी भावनाएं बदलने में कुछ हद तक कार्य करता है यह प्रत्यक्ष प्रमाण है।
आपने अपने पत्र में रायपसेणी सूत्र का उदाहरण देकर अचित शब्द की पुष्टि करने की कोशिश की है जबकि पुस्तक में आपने समवायांग सूत्र का हवाला दिया है, जिस तरह समवायांग सूत्र में अचित शब्द नहीं होते हुए भी अचित शब्द को जोड़ कर अर्थ निकाल रहे है । आप शब्द जोड़ने में अर्थ इच्छानुसार करने में प्रवीण हे, अन्यथा जिसतरह समवायांग सूत्र में जल में उत्पन्न होने वाले, थल में उत्पन्न होने वाले ऐसा स्पष्ट उल्लेख है ठीक इसी तरह रायपसेणी सूत्र में भी जलय, थलय ऐसा स्पष्ट उल्लेख होने पर भी ऐसे शब्दों को तिलांजली देकर अचित शब्द का प्रयोग करते है, यह आपकी अपनी मरजी है। क्याजल, थल में अचित फूल उत्पमहोते है?
समवसरण में सचित वस्तु के त्याग को लेकर सचित फूल बिखरे हुए ही है तो सचित वस्तु का क्या एतराज है ?
__ समवसरण में जो फूलों की वृष्टि होती है वह देवों द्वारा होती है उसको इस ढंग से सजाया जाता है कि किसी के पैर के नीचे आने का कारण ही नहीं, बनता, देवता लोग भी इतने तो विवेकवान होते ही है आज के जमाने में भी यह विवेक स्पष्ट नजर आता है किसी पब्लिक पार्क में जाकर देखिये कि किस तरह से सजाया जाता है जाने आने वाले को क्या कोई अड़चन या संकट होता है, क्या देवताओं को इतना भी विवेक नहीं होता किज्यां-ज्यों फूल बिखेर देते है - भगवान हिंसा का विधान करते नहीं।
पाली जिले के जेतारण में बने हुए समाधिस्थल से आपको कोई संबंध नहीं। तो शायद आपके अन्दर भी मतभेद है। एक बात और ध्यान में लिजिए
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