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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा परिशिष्ठ-३ २६५ - स्थानकवासी भाई दिनेशकुमार जैन द्वारा प्रकाशित ___(मूर्ति पूजा विरुद्ध) (४६) जड पूजा या गुण पूजा का स्पष्टीकरण - श्रीमान हजारिमलजी आपका पत्र दिनांक २७/८ को मिला है। मैं उसके पहले ही राजस्थान चला गया था सो अभी आयाहूंअतः अब जवाब दे रहा हूँ। आपने शुरुआत में ही लिखा कि आपकी पुस्तक किसी सम्प्रदाय के प्रति रोष उंडेलने के लिये नहीं, परन्तु यह सत्य से परे है। आपने अपनी पुस्तक में मूर्ति पूजा मानने वालों को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जगह-जगह जड़ पूजक, हिंसक, मिथ्यात्व आदि विशेषणों से पेट भर कर रोष उंडेला गया है। जैसा कि आपने प्रकाश मुनिजी से सम्पर्क करने के बारे में लिखा। मेरा उन से परिचय है खींचन चौमासे में, जोधपुर चौमासे में मैं गया हूँ काफी विषयों पर चर्चा हुई भी है वे जानते भी है कि मैं मूर्ति पूजा की आस्था वाला हूँ और कई श्रावक भाईयों ने मुनि महाराज के कान भी भरे थे परन्तु इन मुनिराज ने न तो कभी मुझे हिंसक कहा न कभी मिथ्यात्वीकहा। शायद प्रकाश मुनि महाराज आप जैसे विद्वान नहीं है । ठीक इसी तरह स्थानकवासी आचार्य श्री हस्तीमलजी ने जैन धर्म का मौलिक इतिहास जो कि चार भागों में लिखा गया है इन्होंने मूर्ति पूजा संबंधी इतिहास भी इसमें काफी लिखा है साथ में मूर्ति पूजा को नकारा भी है परन्तु मूर्ति पूजा मानने वालों के लिए मिथ्यात्व आदि के विशेषणों से नवाजने का पढने में नहीं आया। शायद वे भी आपजैसी भाषा के ज्ञान से अनभिज्ञ थे। धन्य है आपकी बुद्धिमत्ता को। अब अपनी मूल बात पर आते है:1. भगवती सत्र के चमरेन्द्र के प्रकरण में आने वाले तीन शरण अरहंत वा अरहंत चेइयाणीवा, अणागारेवा, इनमें आपका और हमारा दूसरे शरण में ही मतभेद है। आपने चेइय का अर्थज्ञान करके चार ज्ञान वाले अरहंत करके अपनी मान्यता की पुष्टि की है यदि ऐसा होता तो शास्त्रकार छद्मस्थ अरहंत और केवली अरहंत लिख सकते थे परन्तु यह नहीं लिखा और अरहंत चेइयाणिवां लिखा जो कि अरहंत प्रभू की अनुपस्थिति में अरहंत प्रभू की प्रतिमा भी शरण का कारण है। चेइय शब्द का अर्थ जगह-जगह पर जैसे कि प्राकृत शब्द कोष, संस्कृत शब्द Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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