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- जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा जे व्यक्तिओ आदरपूर्वक प्रभुजीना जिनालयो बंधावे छे तथा विविध बिंबो करावे छे, विधिपूर्वक ते बिंबोनी पूजा करे छे, ते जगतने आनंद पमाडनारा लोको पोते पण जय पामे छे.
श्री भक्ति बत्रीशीमां ग्रंथकार श्री महोपाध्याय यशोविजयजी महाराजाए जणाव्युं छे के
इत्थं निष्पन्नबिम्नस्य प्रतिष्ठाप्तैस्त्रिधोदिता । दिनेभ्योर्वाग्दशभ्यस्तु व्यक्तिक्षेत्रमहाह्वया ॥
आ रीते तैयार थयेला बिंबनी प्रतिष्ठा वधुमां वधु दश दिवस पूर्वे शास्त्रकारोए करवानी जणावी छे अने ते प्रतिष्ठा व्यक्ति = (कोई एक भगवान) क्षेत्र = (चोवीश जिन) अने महा (=१७० जिन) आम त्रण प्रकारे छे.
जिनमन्दिर जाने का अपूर्व फल संपत्तो जिणभवणे पावइ, छम्मासिग्रं फलं पुरिसो। संवच्छरिग्रं तु फलं, दारदेसट्ठियो लहइ ॥
अर्थ-श्री जिनभवन को प्राप्त हुअा पुरुष छह मास के उपवास का फल प्राप्त करता है और द्वारदेश अर्थात् गभारा के पास में पहुँचा हुआ पुरुष एक वर्ष के उपवास का फल प्राप्त करता है ।
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