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जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा
स्थानकवासी परंपरा न ही भद्रबाहुस्वामी, देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण, हरिभद्रसूरि, वादिवेताल शांतिसूरि, शीलांकाचार्य, अभयदेवसूरि, मानतुंगसूरि, प्रद्योतनसूरि, सिद्धसेनदिवाकरसूरि, हिमवंतसूरि, उमास्वाति महाराज, सिद्धर्षि गणि, वादि देवसूरि, दादाजिनकुशलसूरि, हेमचंद्रसूरि, हीरसूरि उपाध्याय यशोविजयजी जैसे समर्थज्ञानी विद्वान दे सकी है।
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न ही स्थानकवासी परंपरा महामेघवान राजा खारवेल, संप्रतिराजा, आम राजा, विक्रमादित्य, शीलादित्य, कुमारपाल राजा जैसे जैन संस्कृति रक्षक समर्थ राजाओं को उत्पन्न कर सकी है ।
न ही स्थानकवासी परंपरा शकटाल, उदायन, कपर्दी, पेथडशा, वस्तुपाल - तेजपाल जैसे शासनप्रभावक जैन मंत्रियों का निर्माण कर सकी है ।
न ही स्थानकवासी परंपरा भामाशाह, देदाशाह, झांझणशाह, भेरुशाह, जगडुशाह, भीमाशाह, धरणाशाह, जावड शाह, विमलशाह, जगतचंद्र शेठ, मोतीशा शेठ, बाहडभट्ट जैसे उदार - दानवीर जैन संस्कृति रक्षक श्रावकरत्नों का सर्जन कर पायी है ।
न ही स्थानकवासी संत सन्मति तर्क, द्वादशारनयचक्र, षड्दर्शन समुच्चय, प्रमाणनयतत्वालोकालंकार, स्याद्वादमंजरी, उपमितिभव प्रपंचकथा, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, प्रशमरति, तत्त्वार्थसूत्र, सिंदूरप्रकरण, योगदृष्टिसमुच्चय, योगबिन्दु, स्याद्वादरहस्य जैसे विद्वत्तापूर्ण शासनप्रभावक शास्त्रग्रन्थों का सर्जन कर पाए हैं ।
न ही स्थानकवासी परंपरा आबू - अचलगढ - देलवाडा, राणकपुर शत्रुंजयभद्रेश्वर, कापरडा, नाकोडा, पावापुरी - जलमंदिर, जैसलमेर, केसरिया, तारंगा, वैभारगिरि, चित्रदुर्ग, शंखेश्वर, एलीफन्टागुफा, उदयगिरि- खंडगिरि जैसे विश्वमशहूर, जैनशासन की बोलबाला करानेवाले बेनमून भव्य स्थापत्यों का सर्जन कर पायी है ।
न ही स्थानकवासी परंपरा ने
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तीर्थंकरों की कल्याणक भूमि
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