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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा १९ स्थानकवासी संतो का जैनशासन में कुछ भी योगदान नहीं जैनशासन की उन्नति हों, ऐसा एक भी कार्य आज तक में स्थानकवासी परंपराने नहीं किया है। जैन शासन की आन-बान-शान बढ़ाने में इनका कुछ भी हिस्सा - योगदान नहीं है । न ही स्थानकवासी परंपरा कुछ शास्त्र सर्जन कर सकी है । श्री महावीरस्वामी के बाद आगमों के गूढ़ अर्थ को समझने के लिए (१) वीरनिर्वाण के १२४२ वर्ष में शीलांकाचार्य ने श्रीआचारांगसूत्र और श्री सूयगडांग सूत्र की टीका बनाई थी। (२) १५९० वर्ष पीछे श्री अभयदेवसूरिजी ने श्री स्थानांग सूत्र से लेकर श्री विपाकसूत्र पर्यन्त के नव (९) अंगों की टीका बनाई थी । (३) आचार्य श्री मलयगिरि महाराजने श्री राजप्रश्नीय सूत्र, श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र, श्री पन्नवणासूत्र, श्री चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, श्री सूर्य प्रज्ञप्तिसूत्र, श्री व्यवहार सूत्र और श्री नंदीसूत्र इन ७ (सात) सूत्रों की टीकाएँ बनायी, (४) आचार्य श्री चन्द्रसूरिजीने निरयावलीसूत्र पंचक की टीकाओं की रचनाएँ की, (५) पू. आ. श्री मल्लधारी हेमचन्द्राचार्यने श्री अनुयोगद्वार सूत्र की टीका बनायी, (६) पू. आ. श्री क्षेमकीर्तिसूरिजी ने श्री बृहत्कल्पसूत्र की टीका रची, (७) वादिवेताल श्री शांतिसूरिजी महाराजने श्री उत्तराध्ययनसूत्र की टीका की रचना की है । इत्यादि अनेकानेक महामनीषी सुसाधुओं के जिनशासन में अनेकविध योगदान को नकारकर स्थानकवासियों ने स्वयं के इतिहास को अंधकारमय बनाया है । इन रचनाकारों ने श्री जैनागम समझाने में अपार उपकार किया है । नयी जन्मी बेबुनियाद स्थानकवासी परंपराने क्या किया ? सिर्फ जिनमंदिर और जिनमूर्तिपूजा का बिना समझे विरोध ही किया और जैनशासन को अपार हानी पहुँचायी । प्राचीन इतिहास को गलत बताकर भोले लोगों को भ्रमित किया व उन्मार्ग का प्रचार किया । यानि जैनसंघ को जोड़ने का कुछ भी नहीं किया सिर्फ तोड़ने का बेकार काम किया है । मिथ्यात्व फैलाने का काम किया है । 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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