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________________ - जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा आदि में गुरू भगवंतों को वंदन के लिए जाना, पुस्तकें छपवाना, साधर्मिक भक्ति करना, शिविरों का आयोजन करना, जीवदया के लिए गाय को घास देना, कबूतर को चुग्गा देना, गौशाला चलाना, आराधना के लिए स्थानक, भवन आदि का निर्माण करना इत्यादि । इन सभी में अध्यवसाय शुभ होते है परंतु साथ में आनुषंगिक रूप से त्रस-स्थावर जीवों की हिंसा भी होती है, फिर भी इन प्रवृत्तियों का निषेध नहीं किया जाता है, क्योंकि किसी प्रवृत्ति में हिंसा का आनुषंगिक रूप से होने मात्र से उस प्रवृत्ति का निषेध नहीं किया जाता, व्यक्ति की भूमिका के अनुसार प्रवृत्ति हेय अथवा उपादेय बनती है। श्रावक की भूमिका में ये प्रवृत्तियां बाधक नहीं होती है। उसी तरह से द्रव्यों की मूर्छा का त्याग एवं भक्ति के भावों की विशेष वृद्धि का कारण होने से अविरति की भूमिका में श्रावक के लिए द्रव्य पूजा का निषेध नहीं हैं । अगर श्रावक सामायिकपौषध में हैं तो उसके लिए वाहन द्वारा गुरूवंदन के लिए जाना, घास डालना आदि एवं द्रव्यपूजा का भी निषेध है, क्योंकि उसकी भूमिका बदल गई हैं। इसलिए एकांत नहीं है परंतु द्रव्य पूजा भूमिकानुसार की जाने वाली भक्ति रूप है । यह समझने पर ही हम आगमों में आते जन्माभिषेक आदि अनेक प्रसंगों पर सम्यग्दृष्टि देवों आदि की भक्ति को समझ सकेंगे, और उस भक्ति में स्थूल हिंसा व अबाधकता भी जान सकेंगे। यह समझने पर ही जैन दर्शन के अनेकांतवाद को सही रूप से समझ सकेंगे । सार रूप इतना ही समझना है कि मन के आधार के कर्मबंध आदि है और उसको लक्ष्य में लेकर अगर जिनशासन के हर अनुष्ठानों को समझने की कोशिश करेंगे तो उन्हें सही न्याय दे सकेंगे । ध्यान रहे कि द्रव्य पूजा अपने पूज्य के बहुमान दिखाने का एक तरीका है । जैसे घर में जमाई आता है तो उसके प्रति बहुमान को बताने के लिए उसकी उत्कृष्ट द्रव्यों से भक्ति, शक्ति अनुसार की जाती है। उसी तरह श्रावक उत्कृष्ट द्रव्यों से भक्ति करके अपनी प्रीति प्रदर्शित करता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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