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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा १९९ की तरह मान्य होना चाहिए क्योंकि ये सभी प्राचीन पंचमहाव्रतधारी परमसत्यवादी पूर्वाचार्यों ने लिखे हैं । (४) जैनधर्म में उदयगिरि- खंडगिरि की गुफा, मोहनजोदड़ो के अवशेष, कंकाली टीला से प्राप्त जिनमूर्तियों से भी मूर्तिपूजा का समर्थन मिलता है । इसके अलावा भी खुदाई से अनेकानेक प्रतिमाएँ प्राप्त हुई है एवं हो रही हैं जो हज़ारों वर्ष प्राचीन हैं, ऐसा वैज्ञानिक परीक्षणों में सिद्ध हैं, जो मूर्तिपूजा की अनादि परम्परा का बोध कराती है । (५) जिस प्रकार स्थानकवासी संत अपने उपकारी गुरुओं के समाधिमंदिर, पगल्या की स्थापना आदि करते हैं, इसी प्रकार स्थानकवासी संतों को परम उपकारी तीर्थंकरों के भी जिनालय, समाधिमंदिर, पगल्या आदि की स्थापना करनी चाहिए । (६) स्थानकवासी संतो को मूर्तिपूजा में हिंसा दिखती है तो आलूप्याज- मूली- गाजर-लहसून आदि कंदमूल भी अनंतकाय जीवों की हिंसा के कारण नहीं खाने चाहिए । (७) चंपानगरी आदि में लाखों जैनधर्मियों के रहने पर भी वहाँ जिनमंदिर न मानना और यक्ष के मंदिर को मानना यह भी मिथ्यात्व की उलटी चाल है । प्रतिमा पूजन श्रावक का एक आगमिक सुकृत्य है 1 (८) "इन्द्र तथा महर्द्धिक वैमानिकदेव देवलोक में शाश्वत जिनप्रतिमा की पूजा नहीं करते थे, अथवा द्रौपदी ने भी जिनप्रतिमा नहीं, पर कामदेव की पूजा कि थी" ऐसा मानना महामिथ्यात्व है। क्या स्थानकमार्गियों को जिनेश्वर पर प्रेम-भक्ति नहीं है और कामदेव पर स्नेहभक्ति है ? कि - जिनेश्वरदेव की मूर्ति का इन्कार करते हो और कामदेव की मूर्ति का स्वीकार करते हो ? - (९) जिनमंदिर और जिनमूर्ति को नहीं मानकर - स्थानकपंथी लोग सांईबाबा, गणपति, जलाराम, रामदेवपीर, सुरधन, अंबा - भवानी आदि मिथ्यात्व को मानने लगे हैं, इसे बंद करना चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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