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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा १८७ असफल प्रयत्न किया है, जिनका खंडन हम पूर्व में भी कर आए हैं एवं तटस्थ पाठक भी विचार कर सकते हैं । (२) मूर्तिपूजक मान्य प्रमाणों से मूर्तिपूजा का विरोध समीक्षा → इस प्रकरण में स्थानकवासी परंपरा में आती तस्करवृत्ति का अनुभव कराया है। करीब-करीब सभी स्थानों में कही पर आगे-पीछे संदर्भ को छोडकर - कही पर अर्थ में घोटाला करके अर्थ किये हैं। जिससे सभी समझ सकते हैं कि डोशीजी ने गीतार्थ गुरुदेवों से अध्ययन नहीं किया है । विजयानंदसूरिजी के ग्रंथ का पाठ भी दिया है। क्या जिन्होंने कुमार्ग समझकर मुंहपत्ति का डोर तोडकर बेबुनियाद स्थानकवासी परंपरा को छोड़कर १७ साधुओं के साथ सत्यमार्ग पर आये वे यहाँ आकर मूर्तिपूजा का विरोध करेंगे ? कभी नहीं कर सकते । - केवल भोले लोगों को फँसाने हेतु - पुस्तक का कलेवर बढ़ाने हेतु यह प्रकरण रचा है जो तथ्यहीन है । तो भी सामान्य लोग फँसे नहीं इसलिये सामान्य से तथ्य बताते हैं .... I प्रथम महानिशीथ में द्रव्यस्तव से भावस्तव की महत्ता बतायी है वह योग्य ही है, साधु के लिये द्रव्यस्तव निषिद्ध ही है, उसे वह करे तो भ्रष्ट श्रमण कहलाएगा वह बराबर ही है, परंतु श्रावक के लिये उसमें कहाँ निषेध किया है ? श्रावक की तो वह करणी है । पंचम अध्ययन के नाम से की बात कपोल कल्पित है, उसमें है ही नहीं । I विवाह चूलिका की कोई प्राचीन हस्तप्रत नहीं मिलती है वह स्थानकवासियों ने अपनी सिद्धि के लिये बनावटी बनाया हुआ है ऐसा प्रतीत होता है | ठाणांग १० स्थानक उद्देशा ३ में दस दशाएँ बतायी हैं । जिसमें संक्षेपिक दशा एक है, उसके दस अध्ययन में विवाहचूलिका का नाम है । टीकाकार टीका में कहते हैं यह संक्षेपिक - दशा हमें प्राप्त नही है । मतलब हजार साल पूर्व टीकाकार के समय में भी जो विवाहचूलिया मिलती नही थी, वह अब कहां से मिलेगी ? इससे सिद्ध है वह बनावटी कृति है । फिर 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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