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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा २७ डॉ. हर्मन जेकोबी का अटल अभिप्राय इसमें डोशीजी ने बहुत ही दगाबाजी की हैं। इसमें मूर्तिपूजक समुदाय का अपमान होना, अभिप्राय बदलने का निवेदन किया, आदर सत्कार से खुश किया इत्यादि अंटसंट प्रमाणहीन बातें लिखी हैं। गुजराती में कहावत हैं, 'हार्यो जुगारी बमणु रमे" इस प्रकार से स्थानकवासी समाज ने कोशिश की और 'जैन हितेच्छु वर्ष १६ में लेख गुजराती में दिया तो उसे डॉ. साहेब का आखिरी निर्णय कैसे कह सकेंगे ? डॉ. खुद जो निर्णय उनके शब्दों में देते हैं वही उनका आखिरी निर्णय कहलाता है वह तो जोधपुर धर्मसूरिजी को ही दिया हुआ है। तो मिथ्या डींगे लगाना सज्जनता नहीं है 1 1 मूर्तिपूजा की करणी चोथे पाँचवे गुणस्थानक के श्रावकों की है । छट्ठे गुणस्थानक वाले साधु की नहीं और सभी आगमों में आचार सूत्र साधु के उद्देश्य से बताये हैं उसमें मूर्तिपूजा का न होना स्वाभाविक है । इतनी सरल वस्तु को न समझकर " मूर्तिपूजा आचार विधान के सूत्रों में नहीं तो क्या अनाचार के सूत्रों में हैं ? " ऐसी-ऐसी असत् दलीलें की है, वे सभी बेकार हैं। आगे जाकर जिनको पक्षपात से कोई प्रयोजन नहीं, ऐसे मध्यस्थ डा० हर्मन जेकोबी पर भी आरोप लगाने में शरम आती नहीं हैं, चूँकि (आखिरी निर्णय उनकी मान्यता से विरूद्ध दिया ।) देखिये उनके शब्द "डॉ. साहब एक तो आभार में दबे हुए थे और फिर वातावरण ही सारा मूर्तिपूजा के पक्ष का था, तीसरा उन्हे अप्रसन्न भला वे क्यों करने लगे ?" आगे जाकर डोशीजी की बेईमानी देखिये - ये लिखते हैं "हिन्द के बाहर जर्मन से भी ऐसा अभिप्राय दिया है" आगे जर्मन से दिया हुआ ता. २९-८१९११ का अभिप्राय इंग्लिश में बताते हैं । अपनी अजमेर जोधपुर की बात सन् १९१४ की हैं । लोगों को भ्रम में डालने धोखा देने हेतु डोशीजीने 'अभिप्राय दिया है' लिखा है, पुरानी बात थी उसके लिये दिया था लिखना चाहिये था । तब प्रामाणिकता गिनी जाती । इससे तो उल्टा यही स्पष्ट होता है कि डॉ. जेकोबी की पहले गलत मान्यता थी, अजमेर में अज्ञानता होने से उसी मान्यता के हिसाब से अभिप्राय दिया था, उसके बाद आ. श्री 1 Jain Education International १५१ समीक्षा - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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