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— जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा सूत्र के प्रकरण में टीका आदि की प्रामाणिकता बता ही दी है।
प्रश्नव्याकरण में अब्रह्मचर्य प्रकरण में 'सुवर्णगुलिका' का नाम है, टीका में जो कथानक बताया है उससे मूलाशय को कहाँ बाधा आती है ? मूलाशय विरूद्ध वह हैं ही नही । इस कथा में कामी चंड प्रद्योत सुवर्णगुलिका को उठा ले गया उसके लिये संग्राम हुआ बताया हैं वह सूत्राशय के अनुसार ही है । इसके आगे पीछे का संबंध टीकाकारों ने अपनी कल्पना से नही परंतु हजारों सालों से चली आती प्राचीन टीका चूर्णि-सुविशुद्ध परंपरा के आधार से दिया है । मूर्तिद्वेष के दुराग्रह से उसके लिये अभद्र शब्दों का प्रयोग करना सज्जनता नहीं है। सूत्र में मूर्ति-विरोध बताया हो और टीकाकार मूर्ति की बाते लाए तो ही सूत्रविरूद्ध या मूलाशय विरूद्ध कह सकते हैं। जब की इस सूत्र में तो क्या, पर स्थानकवासी मान्य ३२ आगमों में एक शब्द से भी मूर्ति या मूर्तिपूजा का विरोध या उसमें मिथ्यात्व कोई बता नहीं सकता है । इससे तो उल्टा ये सिद्ध होता है आप जो जोरशोर से मूर्तिपूजा का विरोध करते है, वह ही मूलागम आशयविरूद्ध है। एक भी पाठ आगम में मूर्तिपूजा के विरोध का है ही नहीं, केवल भोले लोगों को हिंसा-हिंसा करके आप फंसाते हैं । दूसरी बात प्रश्नव्याकरण में सुवर्णगुलिका के साथ दूसरे सीता, द्रौपदी, रूक्मिणी, पद्मावती, तारा, कंचणा, रक्तसुभद्रा, अहिल्या, किन्नरी, सुरुपविद्युन्मती रोहिणी इतने नाम हैं, जिनके लिये युद्ध हुए, अब इन सबके चरित्र भी टीका या अन्य मूर्तिपूजकों के साहित्य से लेंगे उसमें से जिसमे मूर्ति की बात नहीं होंगी उसको संपूर्ण मान्य रखेंगे और जिसमें मूर्ति की बात होगी उसे निकालकर ही अपनी बात को प्रस्तुत करेंगे । इस प्रवृत्ति को मध्यस्थ व्यक्ति क्या समझेंगे ?
भगवतीजी सूत्र के श. १३ उ. ६ में उदायी राजा-प्रभावती का चरित्र तो संक्षिप्त है। क्या आप मानेंगे भगवती में उदायीराजा पौषध-दीक्षाविचारप्रभु पधारे - भाणेज केशी को राज्य देकर चारित्र-इतनी ही बातें है तो इसके अलावा इनके जीवन में कोई भी घटना नहीं घटी ? मानना ही पड़ेगा यहाँ पर अतिसंक्षेप में केवल चारित्र संबंधी ही बात है तो दूसरी बाते हजारों
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