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होगा और सर्वत्र देवद्रव्य सुरक्षित बनेगा । संघजन इसमें थोड़ी उदारता से लाभ लें- ऐसा
हमें लगता है ।
शंका- २९ राजस्थान में ‘अबोट दीया' चलता है, जिसे गुजरात में अखंड दीपक कहते हैं, तो उसका विधान किस शास्त्र में आता है ? उसकी क्या जरूरत ?
समाधान-२९ : जिनमंदिर में या गर्भगृह में कायमी अबोट दीया या अखंड दीपक रखने का विधान किसी ग्रंथ में हो ऐसा जाना नहीं है । शांतिस्नात्र, प्रतिष्ठा, अंजनशलाका जैसे विशिष्ट प्रभावक अनुष्ठानों में अखंड दीपक करने की विधि आ है । पर वह कार्य संपन्न हो जाने पर उसका विसर्जन कर दिया जाता है । इस विसर्जन के भी निश्चित मंत्र विधि-विधान के ग्रंथों में हैं ।
शंका- ३० : 'अखंड दीपक' का लाभ क्या है ? क्या यह देवद्रव्य से किया जा सकता है ? क्या उसे दीपक - 5- पूजा के तौर पर किया जाता है ?
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समाधान- ३० : अखंड दीपक, विशिष्ट विधानों में विधि की पवित्रता, देवताई सानिध्य की प्राप्ति आदि कारणों से किया जाता हो ऐसी संभावना है । जिनमंदिर में अखंड दीपक कायमी करने के पीछे भी ऐसे ही कुछ कारण रहे हों ऐसा लगता है । परंतु उसका विधान शास्त्रों में देखने में नहीं आया है इस कारण से देवद्रव्य का व्यय इस कार्य में करना योग्य नहीं लगता । परमात्मा की दीपक पूजा तो अलग से दीपक या आरती करने से हो सकती है ।
शंका- ३१ : देवद्रव्य से बनाए गए उपाश्रय - आराधना भवन में कौन-कौन-सी धार्मिक प्रवृत्तियां हो सकती हैं ?
समाधान-३१ : उपाश्रय - आराधना भवन देवद्रव्य से बनाया ही नहीं जा सकता । इसलिए उनमें 'कौन-कौन-सी धार्मिक प्रवृत्तियां हो सकती हैं, यह प्रश्न ही नहीं उठता । फिर भी किसी ने देवद्रव्य से उपाश्रय- आराधना भवन बनवाया हो अथवा उसमें थोड़ा बहुत देवद्रव्य उपयोग किया हो तो उसमें कोई भी सामान्य धार्मिक प्रवृत्ति नहीं की जा सकती । इसमें अधिक से अधिक जिनमंदिर बनाकर परमात्मा की प्रतिमा बिराजमान जिनभक्ति ही की जा सकती है ।
शंका- ३२ : देवद्रव्य से किसी संघ ने उपाश्रय - आराधना भवन बनाया हो और श्रीसंघ सामान्य कार्यों में उसका उपयोग भी करता हो तो उस स्थान का उपयोग करने धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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