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________________ गुरुमहाराज से ऊंचे स्थान रूप जिनमंदिर के जीर्णोद्धार एवं नवनिर्माण में हो इस्तेमाल कर सकते हैं । यह द्रव्य परमात्मा की अंगपूजा में कतई काम नहीं आता । विशेष नोंध : जो साधुपने के आचार से रहित है, जिसे शास्त्रों में 'द्रव्यलिंगी' कहा गया है, ऐसे वेषधारी साधु द्वारा इकट्ठा किया हुआ धन अत्यंत अशुद्ध होने से उसे अभयदानजीवदया में ही लगाना चाहिए । जिनमंदिर, जीर्णोद्धारादि में वह न लगाएँ । ९-जिनमंदिर-साधारण श्री जिनेश्वर परमात्मा की भक्ति एवं श्री जिनमंदिर को सुव्यवस्थित चलाने हेतु आया हुआ द्रव्य जिनमंदिर साधारण द्रव्य कहलाता है । जिनमंदिर साधारण हेतु किया गया चंदा, कायमी तिथियाँ, इसी हेतु किसी भक्त द्वारा अर्पित मकान आदि के किराये की आय तथा जिनमंदिर साधारण के भंडार में से प्राप्त द्रव्य इस खाते में जमा किया जाता है । उपयोग : इस द्रव्य में से परमात्मा की भक्ति हेतु सभी प्रकार के द्रव्य लाए जा सकते हैं । उदाहरण के तौर पर - १ - केसर १० - दीपक हेतु स्टैन्ड २ - चंदन/पुष्प/फुलदानी ११ - दीपक हेतु रूई की बाती ३ - बरास/कपूर १२ - खसकूँची ४ - प्रक्षालन हेतु दूध १३ - मोरपीछी-पूंजणी ५ - प्रक्षालन हेतु पानी १४ - अंगलूछने का कपड़ा ६ - धूपबत्ती १५ - पाट लूछने का कपड़ा ७ - दीपक हेतु घी १६ - धूपीया/धूपदानी ८ - दीपक रखने फानुस (लालटेन) १७ - चमर ९ - दीपक हेतु गिलास १८ - दर्पण | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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