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लयों में से
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१ - किताब (पोथी), २ नवकारमालिका (माला) एवं ३ - सापडा (किताबकुर्सी) को अर्पण करने की बोलियाँ ज्ञानखाते में ली जाती है । अन्य सभी उपकरणों को अर्पण करने की बोलियाँ साधु-साध्वी वैयावच्च खाते में जमा की जाती है ।
* पू. साधु-साध्वीजी भगवंतों की वैयावच्च का लाभ श्रावक स्वद्रव्य से ही ले ताकि गुरुभक्ति का लाभ स्वयं को मिले ।
उपयोग :
* यह द्रव्य पू. साधु-साध्वीजीओं की संयम शुश्रूषा एवं विहारादि की अनुकूलता हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है ।
पू. साधु-साध्वीजी हेतु दवाई एवं जैनेतर डॉक्टर- वैद्य आदि की फीस चुकाने हेतु भी काम ले सकते हैं ।
पू. साधु-साध्वीजी की सेवार्थ विहारादि में रखे जैनेतर व्यक्तियों के वेतन हेतु भी काम ले सकते हैं ।
जैन डॉक्टर - वैद्यादि एवं जैन व्यक्ति को यह द्रव्य नहीं दे सकते ।
पू. साधु-साध्वीजी भगवंतों की भक्ति के किसी भी कार्य हेतु किसी ने अपनी खुद की रकम दी हो तो वह रकम वैयावच्च के हर कार्य में, जैन डॉक्टर- वैद्यादि की फीस चुकाने हेतु एवं जैन व्यक्ति के पगार हेतु भी व्यय कर सकते हैं । नोंध : साधु-साध्वी वैयावच्च की आय में से उपाश्रय या विहारधाम नहीं बना सकते एवं उन मकानों की दुरुस्ती - जीर्णोद्धार तथा रखरखाव हेतु रखे आदमीयों को वेतन भी नहीं दे सकते ।
* विहारादि स्थानों में खानपान की व्यवस्था या गौचरी - पानी हेतु वैयावच्च का द्रव्य काम नहीं आ सकता । क्योंकि -
विहारादि स्थलों में से रसवती आदि का कार्य जैन परिवार करता हो तो उनके रहने-खाने-पीने का अवसर आता है ।
* पू. साधु-साध्वीजी भगवंतों के साथ मुमुक्षु-दीक्षार्थी - श्रावक हो या उन्हें वंदन करने पधारे हुए श्रावक-श्राविकाओं को रहने-खाने-पीने का अवसर आता है ।
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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