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सात क्षेत्रों भक्ति पात्र जीवदया - अनुकंपा दया पात्र
जिनशासन के सातक्षेत्र - जिनप्रतिमा, जिनमंदिर, जिनआगम, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका का स्थान मस्तक के समान सब से ऊपर है और ये क्षेत्र माता के समान उपकारी और भक्ति करने योग्य हैं । जिन शासन के सातक्षेत्रों के आलंबन, भक्ति और प्रभाव से सुख, शान्ति, समृद्धि और सद्गति का निर्माण होता है और हमारी आत्मकल्याण और मोक्ष प्राप्ति भी सुलभ होती है ।
दुःखी जीवों के प्रति दया और दीन-अनाथ मानव के प्रति अनुकंपा दान करने से दुःखी जीवों का सिर्फ शारीरिक दुःख थोड़े समय के लिए दूर कर सकते हैं, पर सातक्षेत्रों की भक्ति से दुःखी जीवों का भवोभव का शारीरिक और आत्मिक दुःख चिरकाल के लिए दूर होता है; इसीलिए सातक्षेत्रों का महत्त्व मस्तक समान है और जीवदया-अनुकंपा का महत्त्व पैरों के समान ।
शराब के बिना तड़पते हुए शराबी को दया-भाव से शराब पिलाने से थोड़े समय के लिए उसका दुःख दूर कर सकते हैं, लेकिन यदि शराबी को शराब से हमेशा के लिए मुक्ति दिला सकें तो यह उस पर सच्चा परोपकार कहलाएगा । इसी तरह सच्चा परोपकार और संसार के हर प्रकार के दुःख से मुक्ति दिलाने का काम जैन शासन के सातक्षेत्र करते हैं । इसलिए सातक्षेत्र, जीवदया और अनुकंपा से कई गुना ऊपरी क्षेत्र है और परम आवश्यक है । इसीलिए सातक्षेत्रों के द्रव्यों का उपयोग हॉस्पीटल, समाज सेवा या जीवदया में नहीं कर सकते हैं । यह हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए ।
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