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________________ इस पुस्तक में आप पाओगे ! 1. जिनाज्ञानुसार धर्मद्रव्य की आय और व्यय का शास्त्रीय मार्गदर्शन। 2. देवद्रव्य, गुरुद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, साधारणद्रव्य और आयंबिल, उपाश्रय, साधर्मिक, पाठशाला, जीवदया, अनुकंपा इत्यादि सभीखातों के संचालन के लिए महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन / 3. नूतन दीक्षा प्रसंग, आचार्य आदि पद प्रदान प्रसंग, उद्यापन, उजमणा प्रसंग, पूज्य साधु-साध्वीजी के कालधर्म के बाद शरीर के अग्निसंस्कार - अंतिम यात्रा निमित्तक कौन कौन सी बोलियां बोली जाती हैं 3? और उनकी आय कौन से खाते में ले जानी चाहिए ? उसका उपयोग कहां कर सकते हैं ? ऐसे जिनशासन के सभी अनुष्ठानों का शास्त्रीय मार्गदर्शन। 4. क्या देवद्रव्य से पूजारी वर्ग की तनखा दे सकते हैं ? नहीं तो क्यों नहीं ? 5. प्रभु की आरती-मंगलदीए में आती राशि का मालिक कौन ? पूजारी या परमात्मा ? 6. देवद्रव्य के चढावों पर साधारण आदि का सरचार्ज (वृद्धिदर) क्यों नहीं लगा सकते ? 7. स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ही है ? इस शास्त्रीय सत्य को पुष्ट करनेवाले विविध समुदायों के मुखी आचार्यों के पत्र.... 8. प्रभुपूजा श्रावक का निजी कर्तव्य है अतः प्रभुपूजा देवद्रव्य में से नहीं, स्वद्रव्य से ही करनी चाहिए. 9. देवद्रव्य या धर्मद्रव्य होस्पिटलों व स्कूल - कोलेजों के निर्माण में क्या लगा सकते हैं ? नहीं। 10. साधारण द्रव्य की वृद्धि कैसे करें ? 11. गुरुपूजन के चढावे की आय या सुवर्णमुद्रा, सिक्के चढाकर की हुए गुरुपूजा की राशि का उपयोग साधु साध्वी वैयावच्च के कार्य में नहीं कर सकते। 12. सातक्षेत्र द्रव्य का उपयोग जीवदया और अनुकंपा के कार्य में नहीं कर सकते / 13. उपाश्रय की जमीन हेतु या उसे बनाने के लिए ज्ञानद्रव्य, वैयावच्चद्रव्य, देवद्रव्य आदि का उपयोग नहीं कर सकते या उनमें से ब्याजी याबीन-व्याजी लोन भी नहीं ले सकते। 14. उपाश्रय के मकान या जमीन का उपयोग किसी भी सांसारिक व सामाजिक या शादी-विवाहादि कार्य के लिए किराये से भी नहीं कर सकते। 15. सातक्षेत्र, जीवदया, साधर्मिक भक्ति , पाठशाला एवं साधारण द्रव्य की पेटी - भंडार जिन मंदिर के अंदरुनी भाग में नहीं रख सकते / उन्हें उपाश्रय में या जिनमंदिर के बाहर सुरक्षित सुयोग्य स्थान में रखें / आवृत्ति : चतुर्थ मूल्य : सदुपयोग श्री जैन // धर्मध्वज परिवार। जिनाज्ञानुसार सात क्षेत्र द्रव्य संचालन अभियान For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International Email : [email protected], Web : www.dharm-dhwaj.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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