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________________ परिशिष्ट-१० प्रभुपूजा स्वद्रव्य से ही क्यों ? “विश्व कल्याणकारी, अनंतकरुणानिधान सर्वोत्कृष्ट उपकारी अरिहंत परमात्मा की भक्ति, मुक्ति की दूती है । परमात्मा की भक्ति, भक्त द्वारा स्वयं के अंत:करण का भक्तिभाव, कृतज्ञभाव, समर्पणभाव व्यक्त करने के लिए करनी होती है। और इसीलिए स्वयं को जो प्राप्त हुआ, वह अपनी शक्ति के अनुसार परमात्मा की सेवा में समर्पित करना है।" इतने स्पष्ट मंतव्य के बाद भी प्रभु पूजा परद्रव्य से क्यों नहीं होती? देवद्रव्य से क्यों नहीं होती? ऐसा प्रश्न वर्तमान काल में चर्चा का विषय बनाया गया है। ऐसे लोग कहते हैं कि - ‘प्रभुपूजा स्वद्रव्य से ही करनी चाहिए'- ऐसा कोई नियम नहीं है। क्या ऐसा कोई एकांत नियम है कि प्रभुपूजा परद्रव्य से या देवद्रव्य से नहीं ही की जा सकती'- इस प्रकार एकांत शब्द को निरर्थक प्रस्तुत करके स्वद्रव्य से प्रभुपूजा के शास्त्रीय विधान के सामने अरु चि उत्पन्न करके 'प्रभुपूजा के लिए परद्रव्य या देवद्रव्य का उपयोग किया जा सकता है, इसमें कोई दोष नहीं है परंतु लाभ ही है', इस प्रकार का प्रतिपादन किया जा रहा है; और इस विचारधारा का प्रचार इस प्रकार हो रहा है कि जिससे अज्ञानी अल्प वर्ग भ्रम में पड़े और दुविधा का अनुभव करें। देवगृहे देवपूजापि - जिन मंदिर में जिनपूजा स्वद्रव्येणैव - भी स्वद्रव्य से ही यथाशक्ति कार्या - यथाशक्ति करनी चाहिए पूजा च वीतरागानां - वीतराग परमात्मा की स्वविभवोचित्येन। - पूजा अपने वैभव के अनुसार करनी चाहिए 'विभवानुसारेण - वैभव के अनुसार पूजन यत्पूजनम् ।' - करना चाहिए 'यथालाभं' - जैसी आय हो, तदनुसार नियविहवाणुरूवं । - अपने वैभव के अनुरूप 'स्वशक्त्यानुसारेण - अपनी शक्ति के अनुसार जिनभक्ति: कार्या' - जिनभक्ति करना १३. धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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