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________________ पावापुरी, सु. १४ पू. परम गुरुदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी म. की तरफ से देवगुरु भक्तिकारक सुश्रावक अमीलाल योग धर्मलाभ । तारीख १० का आपका पत्र मिला । उत्तर में ज्ञात करें कि स्वप्नद्रव्य, पारणा, घोडियां इत्यादि श्री जिनेश्वर देव को उद्देश्य करके घी की बोलियां बोली जाती हैं उनका द्रव्य शास्त्र के अनुसार देवद्रव्य में ही गिना जाना चाहिए । इससे विपरीत रीति से उसे उपयोग में लेनेवाला देवद्रव्य के नाश के पाप का भागीदार होता है । धर्म की आराधना में सदा उद्यत रहो यही सदा के लिए शुभाभिलाषा है । द. : चारित्रविजय के धर्मलाभ (स्व. उपाध्यायजी श्री चारित्रविजयजी गणिवर) श्रावण सुद ७ शुक्रवार ता. ६-८-५४ गुडा बालोतरा (राजस्थान) पूज्य आचार्य महाराज श्री विजय महेन्द्रसूरीश्वरजी म. आदि की तरफ से वेरावल मध्ये सुश्रावक शाह अमीलाल रतिलाल योग धर्मलाभ । आपका पत्र मिला । पढ़कर समाचार ज्ञात हुए । उत्तर में लिखा जाता है कि उपधान की आय देवद्रव्य में जाती है ऐसा ही प्रश्न में उल्लेख है । दूसरी बात यह है कि स्वप्नों की आय के लिए स्वप्न उतारना जब से शुरु हुआ है तब से यह आमदनी देवद्रव्य में ही जाती रही है । इसमें से देरासर के गोठी को तथा नौकरों को पगार (वेतन) दिया जाता है । साधु सम्मेलन में इस प्रश्न पर चर्चा हुई थी । परम्परा से यह राशि देवद्रव्य में गिनी जाती रही है इसलिए देवद्रव्य में ही इसे ले जाने हेतु उपदेश देने का निर्णय किया गया । यहाँ सुखशान्ति है, वहाँ भी सुखशान्ति वरते । धर्मध्यान में उद्यम करना । नवीन ज्ञात करना । द. : 'मुनिराज श्री अमृतविजयजी' | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? १९३) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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