________________
ईडर आ.सु. १४ पूज्य आचार्य महाराज श्रीमद् विजय लब्धिसूरिजी महाराज की आज्ञा से तत्र सुश्रावक देवगुरु भक्तिकारक जमनादास मोरारजी योग्य धर्मलाभ बांचना ।
(५)
आप का पत्र मिला । बांच कर समाचार जाने । आप देवद्रव्य के भाव २ ।। को पांच करके २।। साधारण खाते में ले जाना चाहते हो; यह जाना परन्तु ऐसा होने से जो पच्चीस मन घी बोलने की भावनावाला होगा, वह बारह मन बोलेगा, इसलिए कुल मिलाकर देवद्रव्य की हानि होने का भय रहता है, अतः ऐसा करना हमें उचित नहीं लगता । साधारण खाते की आय को किसी प्रकार के लाग द्वारा बढ़ाया जाना ठीक लगता है । दूसरे गांवों में क्या होता है, इसकी हमें खास जानकारी नहीं है । जहां जहां हमने चौमासे किये हैं वहां अधिकांश देवद्रव्य में ही स्वप्नों की आय जमा होती है । कहीं कहीं स्वप्नों की आय में से अमुक भाग साधारण खाते में ले जाया जाता है । परन्तु ऐसा करनेवाले ठीक नहीं करते, ऐसी हमारी मान्यता है । धर्मसाधन में उद्यम करियेगा ।
(६)
प.पू. पाद् आचार्यदेव श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी म. तरफ से शान्ताक्रुझ मध्ये देवगुरु भक्तिकारक सुश्रावक जमनादासभाई योग्य धर्मलाभ । आप का पत्र मिला । पढ़कर समाचार जाने । सूरत, भरूच, अहमदाबाद, महेसाणा और पाटन में मेरी जानकारी के अनुसार किसी अपवाद के सिवाय स्वप्न की आय देवद्रव्य में जाती है । बड़ौदा में पहले हंसविजयजी लायब्रेरी में ले जाने का प्रस्ताव किया था परन्तु बाद में उसे बदलकर देवद्रव्य में ले जाने की शुरुआत हुई थी । खम्भात में अमरचन्द शाला में देवद्रव्य में होता जाता है । चाणस्मा में देवद्रव्य में जाता है । भावनगर की निश्चित जानकारी नहीं है ।
१०८
द. : 'प्रवीणविजय के धर्मलाभ'
अहमदाबाद में साधारण खाता के लिए प्रतिघर से प्रतिवर्ष अमुक रकम लेने का रिवाज है, जिससे केसर, चन्दन, धोतियां आदि का खर्च हो सकता है । ऐसी योजना अथवा प्रतिवर्ष शक्ति अनुसार पानड़ी की योजना चलाई जाय तो साधारण खाते में ले
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org