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________________ स च देवद्रव्यादि-भक्षको महापापो प्रहत-चेताः । मृतो पि नरकं अनुबंध-दुर्गतिं व्रजेत् ।। महापाप से नाश हो गया है मन जिसका, ऐसा व्यक्ति देवद्रव्यादि का भक्षण करके मरने पर दुर्गति का अनुबंध कर नरक में जाता है । प्रभास्वे मा मतिं कुर्यात् प्राणैः कण्ठगतैरपि । अग्निदग्धाः प्ररोहन्ति प्रभादग्धो न रोहयेत् ।। (श्राद्धदिन-कृत्य १३४) प्राण कंठ में आने पर भी देवद्रव्य लेने की बुद्धि नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अग्नि से जले हुए वृक्ष उग जाते हैं, लेकिन देवद्रव्य के भक्षण के पाप से जला हुआ वापिस नहीं उगता । ___ अग्निदग्धाः पादप - जलसेकादिना प्ररोहन्ति पल्लवयन्ति परं देवद्रव्यादि - विनाशोग्र - पाप - पावक - दग्धो नरः समूल - दग्ध - द्रुमवत् न पल्लवयति प्रायः सदैव दुखभाक्त्वं पुनर्नवो न भवति । . ___ अग्नि से जले हुए वृक्ष जल के सिंचन से उग जाते हैं और पल्लवित हो जाते हैं, लेकिन देवद्रव्यादि के विनाश के उग्र पाप रूपि अग्नि से जला हुआ, मूल से जले हुए वृक्ष की तरह वापस नहीं उगता है । प्रायः करके हमेशा दुःखी होता है । प्रभा-स्वं ब्रह्महत्या च दरिद्रस्य च यद् धनं । गुरु-पत्नी देवद्रव्यं च स्वर्गस्थमपि पातयेत् ।। (श्राद्धदिन-कृत्य-१३५) प्रभाद्रव्य हरण, ब्रह्महत्या और दरिद्र का धनभक्षण-गुरु पत्नी भोग और देवद्रव्य का भक्षण स्वर्ग में रहे हुए को भी गिरा देता है । * दिगम्बरों के ग्रन्थ में भी कहा है कि :वरं दावानले पातःक्षुधया वा मूतिर्वरम् । मूर्ध्नि वा पतितं वज्रं न तु देवस्वभक्षणम् ।।१।। वरं हालाहलादीनां भक्षणं क्षणं दुःखदम् । निर्माल्यभक्षणं चैव दुःखदं जन्म जन्मनि ।।२।। दावानल में गिरना श्रेष्ठ, भूख से मौत श्रेष्ठ या सिर पर वज्र (शस्त्र) गिर पड़े तो भी अच्छा लेकिन देवद्रव्य का भक्षण नहीं करना चाहिए । विष का भक्षण श्रेष्ठ है, क्योंकि थोड़े काल का दुखदायी होता है । लेकिन निर्माल्य का भक्षण तो जन्म-जन्म में दु:ख देनेवाला होता है। | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? ९७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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