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व्यवहार भाष्य नामक आगम ग्रंथ में परमात्मा के बिंब का 'शंगार कर्म' याने कि अंगरचना करने की बात आती है । अतःएव श्वेतांबर परंपरा में आंगी-अंगरचना करने की बात आती है । श्वेतांबर परंपरा में आंगी-अंगरचना की अस्खलित परंपरा भी देखी जा सकती है ।
परमात्मा की पूजा में जगत की श्रेष्ठ से श्रेष्ठ ऐसी सभी चीजों का प्रयोग करना चाहिए । ऐसा विधान पंचाशक, षोडशक, दर्शन शुद्धि प्रकरण, धर्मसंग्रह, श्राद्धविधि जैसे प्राचीन प्राचीनतर ग्रंथों में देखने को मिलता है । सोना, चांदी व सोना-चांदी से निर्मित चीजें जगत में श्रेष्ठ गिनी जाती हैं । अतः इनका प्रयोग जिनपूजा में किया जाता है । केवल शोभा की अभिवृद्धि का हो उद्देश्य इसमें नहीं होता । परंतु जिनाज्ञा-पालन एवं उपरोक्त उद्देश्य के अलावा, द्रव्यमूर्छा का त्याग, बाल जीवों को प्रतिबोध आदि अन्य अन्य अनेक उद्देश्य भी इसके पीछे हैं ।
जिनदर्शन करनेवाला आराधक केवल अंगरचना में ही उलझ जाए, यह भी ठीक नहीं है । अंगरचना यह एक माध्यम है, परमात्मा के साथ अनुसंधान करने का ! अंगरचना से बाह्य सम्बंध स्थापित होता है । बाह्य सम्बंध आंतरिक संबंध का कारण बनता है । परमात्मा की अंगरचना के माध्यम से परमात्मा के ‘परमात्म-तत्त्व' के साथ मिलन करना है । यह सब क्रमिक होता है । पहले पिण्डस्थ अवस्था, फिर पदस्थ अवस्था, फिर रूपस्थ अवस्था एवं फिर रूपातीत अवस्था का ध्यान - यह क्रम है । किसी जीव विशेष को उत्क्रम से (क्रम रहित) ध्यान लगे - ऐसा बन सकता है, पर सभी जीवों के लिए ऐसा नियम नहीं बना सकते ।
शंका-४६ : पूजा के कपड़ों में सामायिक हो सकती है ? समाधान-४६ : पूजा के कपड़ों में सामायिक करना योग्य नहीं है । सामायिक श्वेत-सूती वस्त्र पहनकर करना चाहिए, जबकि पूजा के वस्त्र मूल्यवान, रेशमी आदि होते हैं । सामायिक में ज्यादा समय बैठना होता है, पसीना होने से वस्त्र मलिन-अशुद्ध हो जाते हैं । उन्हें पहनकर पूजा करने से प्रभु की आशातना होती है । अतः ऐसा व्यवहार करना योग्य नहीं है ।
शंका-४७ : फिलहाल पद्मावती पूजन पढ़ाया जाता है सो योग्य है ?
| धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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