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७२६/१३४८
षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट-११, मूलश्लोकानुक्रम
पृ. नं.
२२
(१७०)
२८
५७
(१८९) (८५०)
(७८) (२४७)
११
(१६८)
८७
०
१८
श्लोक पापं तद्विपरीतं. पायूपस्थ पिब खाद च पृथ्वी जल पृथ्व्यादि पूर्ववच्छेष पंचविंशति पंचेन्द्रियाणि प्रकृतिवियोगो प्रतिज्ञाहेतु प्रत्यक्षमनुमानं प्रत्यक्षमनुमानं प्रत्यक्षं कल्पना प्रत्यक्षं च प्रमाणं च प्रमाणपंचकं प्रमाणे द्वे च प्रसिद्धवस्तु बद्धस्य कर्मणो बुद्धिः सुख बौद्धं नैयायिक बौद्ध राद्धांत य इहायुत
२४
__ पृ. नं. | श्लोक
(७५३) यच्च सामान्य (२४५) यथा काकादि (१००४)
येनोत्पाद (१००५) | रुपाणि पक्ष (१००६) रुपात्तेजो
(१३९) रोलंबगवल (२५५) लोकायतमते (५४) लोकायता (२५६)
विजिगिषु (१८९) व्यवसायात्मकं (९८३) शाब्दमाप्तो (१३९) शाब्दं शाश्वत
(६८) षड्-दर्शन (८०६) |सत्त्वं रजस् (९६४) सदर्शनं (९९०) समुदेति - (६०) संवरस्तन्निरोध (१७१) | साध्यवृत्ति (७६३) सांख्या निरी (९४५) | सुरासुरेंद्र
(३६) स्पर्शनं रसन (८४) | स्पर्शरस (९६२) हेत्वाभासा
(१००९) (९९९) (१९५) (१३९) (१७३) (९८५) (९९८) (२४१)
७४
७९
34
(२)
६
wour
(४५) (७६०) (१००८) (२३९) (६२६) (२४५) (९४५) (१९७)
३८
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