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________________ निक्षेपयोजन ५५५/११७८ अनुगामी द्रव्य के साथ नहीं, किन्तु अननुगामी पर्याय के साथ संबंध है-यह वादी पू.आ.श्री. सिद्धसेन दिवाकरसूरिजी के अनुगामियों का अभिप्राय है । इस मत के अनुसार नाम, स्थापना, द्रव्य, इन तीन निक्षेपों का संबंध द्रव्यास्तिक के साथ है, पर्यायास्तिक के साथ नहीं । पर्यायास्तिक नय का संबंध केवल भाव निक्षेप के साथ है । अब इस विषय में पू.आ.श्री.जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणजी का मत प्रस्तुत करते है, स्वमते तु नमस्कारनिक्षेपविचारस्थले “भावं चियसद्दणया सेसा इच्छन्ति सव्वणिक्खेवे" (२८४७) इति वचसा त्रयोऽपि शब्दनयाः शुद्धत्वाद्भावमेवेच्छन्ति ऋजुसूत्रादयस्तु चत्वारश्चतुरोऽपि निक्षेपानिच्छन्ति अविशुद्धत्वादित्युक्तम्। अर्थ : अपने मत में तो जहाँ पर नमस्कार के निक्षेप का विचार किया है, वहाँ शब्द नय भाव निक्षेप को ही मानते हैं और शेष नय सब निक्षेपों को मानते हैं । इस वचन के द्वारा शब्द, समभिरूढ और एवंभूत ये तीनों नय केवल भाव को और ऋजुसूत्र आदि चार नय अशुद्ध होने से चारों निक्षेपों को स्वीकार करते हैं - यह कहा है । कहने का सार यह है कि, किसी पद के द्वारा व्युत्पत्ति के बल से जो अर्थ प्रतीत होता है, उसके वाचक शब्द के विषय में सांप्रत, समभिरूढ और एवंभूत ये तीनों शब्दनय प्रधानरूप से विचार करते हैं । घटन क्रिया में समर्थ घट ही घट है, इस वस्तु के साथ शब्द नयों का संबंध है । जल का लाना घटन किया है, जल का लाना एक पर्याय है, वह अनुगामी द्रव्य नहीं है, इस पर्याय विशेष के साथ मुख्यरूप से संबंध रखने के कारण शब्द-नय भावबोधक कहे जाते हैं। जल लाने में समर्थ घट भाव-घट है, वह जिस प्रकार नामघट अथवा स्थापनाघट नहीं है, इसी प्रकार द्रव्य घट भी नहीं है । भाव घट का कारण है मृत्पिंड । उसके साथ शब्दनयों का संबंध नहीं है । मिट्टी के पिंड से पानी नहीं लाया जा सकता । अपने आकार में जब घट बन जाता है तभी पानी लाया जा सकता है । शब् अनुसार द्रव्य घट को घट नहीं कहा जा सकता । शब्द और अर्थ के वाच्य-वाचक भाव के साथ ऋजुसूत्र का संबंध नहीं है, वह वर्तमान काल के साथ संबंध रखनेवाले अर्थ को स्वीकार करता है । वर्तमान काल का पर्याय अतीत और अनागत में नहीं है-इसलिए द्रव्य के अनुगामी स्वरूप के साथ यद्यपि ऋजुसूत्र का सीधा संबंध नहीं है परन्तु गौण रूप से सम्बन्ध अवश्य है । ऋजुसूत्र नय वर्तमान पर्याय के आधारभूत द्रव्य की एकता का निषेध नहीं करता । भाव-घट बिना द्रव्य के प्रतिष्ठित नहीं हो सकता । भाव घट में भी उत्तरवर्ती क्षणों में घट के उत्पन्न करने की शक्ति है । इस अपेक्षा से वह भी द्रव्य घट है । इस स्वरूप के द्रव्य घट का निषेध ऋजुसूत्र नहीं कर सकता । अतः विशेषावश्यक के कर्ता अपने मत में ऋजुसूत्र को भी नैगम आदि के समान द्रव्यार्थिक का भेद मानते हैं और ऋजुसूत्र के अनुसार द्रव्य निक्षेप को भी स्वीकार करते हैं । अब ऋजुसूत्र नय नाम और भाव निक्षेप को ही मानता है और द्रव्य निक्षेप को नहीं, इस मान्यता का खंडन करते है, ऋजुसूत्रो नामभावनिक्षेपावेवेच्छतीत्यन्ये, तत्र(तन्न); ऋजुसूत्रेण द्रव्याभ्युपगमस्य सूत्राभिहितत्वात्, पृथक्त्वाभ्युपगमस्य परं निषेधात् । तथा च सूत्रम्-“उज्जुसुअस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ एगं दव्वावस्सयं, पुहत्तं नेच्छइ त्ति"। (अनुयो. सू. १४) ___ अर्थ : ऋजुसूत्र नाम और भाव इन दो निक्षेपों को ही मानता है इस प्रकार कुछ लोग कहते हैं । यह मत युक्त नहीं है, क्योंकि ऋजुसूत्र द्रव्य को मानता है यह सूत्र में प्रतिपादित है । यह नय पृथक्त्व अर्थात् अनेकता को स्वीकार करता है, इसी वस्तु का निषेध है । सूत्र (सूत्र का अर्थ) इस प्रकार है - "ऋजुसूत्र नय के मत से एक उपयोग रहित पुरुष आगमत: एक द्रव्यावश्यक है, यह नय अनेकता को नहीं मानता । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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