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________________ ५५२ / ११७५ षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट-५ होता है तब दूध और दही का आकार में कुछ भेद होता है, पर उतना नहीं जितना मिट्टी के पिंड और घट का होता है । दूध की गोलाई जितनी होती है उतनी दही की भी होती है। दूध के समान दही भी वर्ण में श्वेत होता है । पर दूध द्रवहा है और दही जमकर घन हो जाता है इतना भेद प्रकट होता है । इस प्रकार के विकारों में एकबार विकार उत्पन्न होने पर फिर विकार से रहित दशा का आकार स्पष्ट नहीं दिखाई देता । दहीं बन जाने पर फिर दूध का आकार नहीं बनता । बीज और अंकुर में कारण और कार्य के आकारों में जो भेद है, वह दूध दही आदि की अपेक्षा से भी अत्यन्त अधिक है । वट वृक्ष के बीज का आकार अत्यंत छोटा है । उसको एक चींटी (कीडी) भी उठाकर इधर से उधर दूर तक ले जा सकती है । जब वह वृक्ष बडा होकर शाखा प्रशाखाओं के साथ फैल जाता है तब उसको हाथी भी नहीं उखाड़ सकते । शाखाओं के लम्बे और ऊंचे आकार के साथ बीज के अत्यन्त लघु आकार का भेद रहता हैं परन्तु एक अनुगत आकार सदा रहता है यह अनुगत रूप द्रव्य का है । जब द्रव्य कभी विकार में भिन्न आकार को धारण कर के फिर मूल आकार में दिखाई देता है तो द्रव्य का अनुगत स्वरूप स्पष्ट हो जाता है । सर्प जब फण ऊँचा कर के खड़ा होता है उससे फण रहित दशा का आकार भिन्न होता है । जब वही सर्प कुंडल के समान गोल हो जाता है तब जो आकार है वह फण के नीचे और ऊँचे होने की दशा से भिन्न होता है। इन समस्त दशाओं में सर्प का अनुगत आकार स्पष्ट प्रतीत होता है। एक ही सर्प कभी फण ऊँचा करता है और कभी नीचा । वही सर्प कभी गोल हो जाता है और कभी लम्बा । एक ही सर्प के भिन्न भिन्न आकार मूल रूप के साथ बार बार दिखाई देते हैं, इसलिए अनुगत और जो अनुगत नहीं है इस प्रकार के दोनों रूप प्रत्यक्ष होते हैं । अनुगत रूप द्रव्य है । अनुगामी अर्थ में भिन्न आकार के पर्यायों को प्रकट करने की जो शक्ति है वह भी द्रव्य कही जाती है । कारणभू द्रव्य प्रत्यक्ष है और उसकी पर्यायों के उत्पन्न करने की शक्ति प्रत्यक्ष नहीं है, उसका पर्यायों से अनुमान होता है। जब पर्याय समान आकार के होते हैं तब उनका अनेक दशाओं में प्रत्यक्ष कठिन हो जाता है । जब अर्थ अन्य अर्थ के रूप परिणत नहीं होता किन्तु परिणाम को प्राप्त करता है तब पर्यायों के आधार का भेद कुछ दशाओं में प्रत्यक्ष नहीं होता । आजकल यन्त्रों के द्वारा पैसा आदि जो उत्पन्न होते हैं उनका आकार अत्यन्त समान होता है। यदि उनको भिन्न स्थान में रक्खा हुआ न देखा जाय तो यह पैसा भिन्न है और दूसरा भिन्न है यह नहीं प्रतीत होता । एक ही स्थान पर एक पैसे को हटाकर उसके स्थान पर दूसरा पैसा रख दिया जाय तो केवल देखने से पहले और दूसरे पैसे का भेद स्पष्ट नहीं दिखाई देता। जब तक स्थान पर एक द्रव्य में समान आकार के पर्याय निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं, भिन्न आकार के अर्थ के रूप में परिणाम नहीं होता, तब भ्रम हो जाता हैं । एक द्रव्य स्थिर रूप प्रतीत होने लगता है । पर्यायों के उत्पत्ति और नाश नहीं दिखाई देते । जब दीप प्रकाश करता है तब उसकी ज्वाला प्रति क्षण उत्पन्न होती और नष्ट होती रहती है। तेज अनुगत रूप में स्थिर रहता है । देखनेवाले को 'तेज' द्रव्य घण्टों तक एक स्थिर प्रतीत होता है । प्रत्येक क्षण में उत्पन्न होनेवाली ज्वालाओं का भेद स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देता । यह ज्वाला पहले क्षण की है, यह दूसरे क्षण की हैं, इस रूप से ज्वालाओं का भेद नहीं दिखाई देता । यहाँ पर अनुमान के द्वारा ज्वालाओं का भेद प्रतीत होता है । जब तक तेल रहता है तब तक दीप जलता रहता है । निरंतर तेल के न्यून होते रहने से अनुमान होता है । प्रथम क्षण के तेल से प्रथम ज्वाला उत्पन्न हुई थी दूसरे क्षणों के तेल से अन्य ज्वालायें उत्पन्न होती हैं । इस दीप के दृष्टांत से सिद्ध है जब एक द्रव्यरूप अधिकरण में समान आकार के पर्याय उत्पन्न होते हैं तब पर्यायों का भेद नहीं प्रतीत होता किन्तु केवल अनुगामी द्रव्य प्रतीत होता है । दीप के समान समस्त अर्थ पुद्गल के परिणाम हैं । जब उनमें अन्य हेतुओं से भिन्न आकार को धारण करनेवाले परिणाम नहीं उत्पन्न होते तब भी समान आकार के परिणाम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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