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________________ ५२६ / ११४९ षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट- ४ ( न होने रूप) भी भासित होता है । जैसे कि, “अहमदाबाद में वसंतऋतु में बनाया हुआ मिट्टी का पका हुआ छोटा एक लालघट हैं ।" इस घट को स्वद्रव्य से सोचे कि क्या यह मिट्टी का घट है ? तो उत्तर में "हा" ही कहनी पडे और क्या यह सोने का या चांदी का घट हैं ? तो “ना" ही कहनी पडे । क्योंकि वह घट मिट्टी का है, परन्तु सोने का या चांदी का नहीं है । यह स्वद्रव्य से अस्तित्व और परद्रव्य से नास्तित्व हुआ । उसी तरह से क्या यह अहमदाबाद का घट है ? तो “हा” ही कहनी पडे और क्या यह घट सुरत का है ? तो “ना" ही कहनी पडे, यह स्वक्षेत्र से अस्ति स्वरूप और परक्षेत्र से नास्ति स्वरूप हुआ । उसी तरह से वसंतऋतु की बनावट का हैं और शिशिरादि अन्य ऋतुओं में बनाया हुआ नहीं है । यह स्वकाल और परकाल आश्रयी अस्ति नास्ति हुआ । तथा क्या यह घट पक्व है ? या अपक्व हैं ? लाल है या काला है ? छोटा हैं या बड़ा है ? पक्व में, रक्त में और छोटे घट में "हा" कहा जाता है वह स्वभाव से अस्ति हैं और अपक्व में, श्याम में तथा बडे घट के प्रश्न में "ना" कहा जाता हैं, वह परभाव से नास्ति हैं । इस तरह से संसारवर्ती सर्व भी सचेतन-अचेतन पदार्थ स्वद्रव्य - स्वक्षेत्र- स्वकाल और स्वभाव को आश्रयी " अस्ति स्वरूप " ( होने रूप ) है और परद्रव्य - परक्षेत्र - परकाल और परभाव को आश्रयी "नास्ति स्वरूप" ( न होने रूप) हैं । जगद्वर्ती पदार्थो का यह स्वयं सिद्ध सहज स्वरूप है और वह पारिणामिक भाव से वर्तित होता है । इस तरह से सर्व पदार्थ स्वद्रव्यादि से अस्ति है और परद्रव्यादि से नास्ति है । उसके संयोगिक भाव से ७ भांगे होते हैं । जिसको जैन शास्त्रो में सप्तभंगी कहा जाता हैं । वहाँ प्रथम स्वद्रव्य और परद्रव्य की अपेक्षा से जो "सप्तभंगी" होती हैं, वह समजाई जाती हैं । 1 द्रव्यादिक विशेषणइ भंग थाइ - विवक्षा किये हुए इस मिट्टी के घडे को मिट्टी द्रव्य से सोचे तो अस्ति है । परन्तु मिट्टी का बना हुआ यह घट कहीं सोने का, चांदी का, तांबा का बना हुआ नहीं है, ऐसे दूसरी सभी जाति का बना हुआ यह घट नहीं हैं । इसलिए सोने-चांदी के घट का अभाव सूचित करने और केवल मिट्टी द्रव्य का ही बना हुआ यह घट है, ऐसा बताने के लिए उसके आगे " स्यात् " लिखा (बोला) जाता हैं । क्योंकि " स्यात् " यानी "कुछ खास विवक्षित द्रव्यादिक की अपेक्षा से ही " अर्थात् मिट्टी द्रव्य को आश्रयी ही यह घट अस्ति हैं । अब मिट्टी का तो वह घट हैं ही, जैसे सोने-चांदी आदि अन्य धातु के रुप में यह घट नास्ति है, वैसे मिट्टी द्रव्य के आश्रयी कोई नास्ति न समज ले । परन्तु मिट्टी द्रव्य की अपेक्षा से तो अस्ति शब्द के पीछे " एवकार" शब्द रखा जाता है । इस तरह से स्वद्रव्य के आश्रय से वह घट " स्यादस्त्येव" अपने द्रव्य के आश्रय से तो यह घट है ही । ऐसा यह प्रथम भांगा बनता हैं । जब उसी घट को सोने-चाँदी आदि परद्रव्य से सोचते है । तब उसका 'नास्ति' स्वरूप प्रधान रूप से दिखाई देता हैं । मिट्टी द्रव्य के आश्रय से जो अस्ति स्वरूप था, वह स्वरूप अवश्य अंदर है ही, परन्तु नास्ति की विवक्षा के काल में वह गाया नहीं जाय, बोला नहीं जाता । गौण होता है और नास्ति स्वरूप प्रधान होता है फिर भी एकान्त नास्तित्व नहीं है। इस प्रकार समजाना हैं । इसलिए मिट्टी द्रव्य के आश्रय से अस्तित्व भी गौणभाव से अंदर रहा हुआ हैं । वह समझाने के लिए नास्ति शब्द के आगे “स्यात् " पद जोडा जाता हैं अर्थात् जो नास्ति स्वरूप हैं, वह भी परद्रव्यादि की ही केवल अपेक्षा से हैं । इसलिए कथंचिद् हैं, एकान्तिक नहीं है तथा सोने-चांदी के आश्रय जो नास्तित्व हैं, वह शंकाशील और वैकल्पिक न हो जाये, इसके लिए पीछे एवकार रखकर स्यान्नास्त्येव - यह घट कथंचिद् नास्ति ही हैं । यह दूसरा भांगा हुआ। प्रथम भांगे में अस्ति प्रधान और नास्ति गौण हैं । जब कि दूसरे भांगे में नास्ति प्रधान और अस्ति गौण हैं । वास्तविक रुप से तो ये दोनो ही भांगे समझने अनिवार्य है । अतीव आवश्यक है । क्योंकि बाकी के सभी भांगे इस दो भांगे के परस्पर जुडने से ही होनेवाले हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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