SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४४/९६७ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ६७, वैशेषिक दर्शन आई हुई है। क्योंकि इस विशिष्टवृष्टि से होनेवाली, लकडे को खींच लाना आदि से युक्त नदी की बाढ है। जैसे कि पहले की बरसात में आई हुई नदी की बाढ ।) (सारांश में जहा नदी में बाढ आई है, वहां बरसात नहीं है। फिर भी बाढरुप कार्य देखने से उपरीतनवास में हुई वृष्टि का अनुमान होता है। अर्थात् कार्य से कारण का अनुमान होता है ।) (१) कारण भी कार्य का जनक होने से, कार्य के पहले उपलब्ध होता है। उस उपलब्ध होते कार्य के लिंग = कारण से कार्य का अनुमान होता है। जैसे कि आकाश में विशिष्टमेघ = बादलो की उन्नति के दर्शन से वृष्टिरुप कार्य का अनुमान होता है। अर्थात् आकाश में काले-काले बादलो के दर्शन से वृष्टि का अनुमान होता है। (२) धूम अग्नि का संयोगी है। इसलिए धूम को देखकर होनेवाला अग्नि का अनुमान संयोगी अनुमान कहा जाता है। (३) पानी में रहे हुए उष्ण स्पर्श से (जल में प्रविष्ट) अग्नि का अनुमान होता है। वह समवायी अनुमान है। फुत्कार मारते सांप को देखकर निकट में नेवले का तथा अग्नि से शीताभाव का अनुमान होता है, वह विरोधी अनुमान है। "अस्येदं" इस सूत्र में कार्य, कारण आदि लिंगो का ग्रहण किया है। वह केवल उदाहरणो के निमित्त से ग्रहण किये हुए है। परन्तु उससे ऐसा नियम होता नहीं है कि, कार्यादि से अतिरिक्त लिंग नहीं है। क्योंकि उपर कहे हुए कार्यादि से अतिरिक्त लिंग भी है कि जो अपने अविनाभावि साध्य का यथार्थ अनुमान कराते है। ___ जैसे कि चंद्रोदय समुद्र में ज्वार का तथा कमल के विकास का लिंग है। इसलिए चंद्रोदय से समुद्र की ज्वार का तथा कमल के विकास का अनुमान होता है। वह चंद्रोदय समुद्र की ज्वार का तथा कमल के विकास का कार्य या कारण नहीं है। (फिर भी तादृश अनुमान होता है। तथा) विशिष्ट देश, काल आदि के संयोग से चंद्र का उदय, समुद्र में ज्वार का तथा कमल के पत्तो का विकास स्वतंत्रतया अपने-अपने कारणो से उत्पन्न होता है। (फिर भी उसमें अविनाभाव अवश्य है। इसलिए उसके बल से चंद्रोदय से उसका अनुमान हो जाता है। इस तरह से शरदऋतु में पानी की निर्मलता से अगत्स्य के उदय का अनुमान होता है। (इस जल की निर्मलता कुछ खास वायु आदि कारणो से उत्पन्न हो के भी अविनाभाव संबंध के कारण अगत्स्योदय का अनुमान करा देती है। अगत्स्योदय और शरत्कालीन जल की निर्मलता के बीच कोई कार्य-कारणभाव नहीं है। दोनो अपने-अपने कारणो से उत्पन्न होते है।) ये सभी कार्य-कारण आदि से अतिरिक्त लिंग "अस्येदं" - "यह इसका संबंधी है" - यह सामान्य अविनाभावसूचक पद से ग्रहण कर लेना। "इस साध्य का यह संबंधी है" - इस रुप से जो जिसके देश कालादि से अविनाभाव रखता है वह उसका लिंग होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy